Saturday, March 20, 2010

लौ को मैं संभाल रही हूँ.... : By Deewani.

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मावस के
अँधेरे है,
तूफां के
थपेड़े हैं,
खारे
अश्क
अंखियों में
भरे है,
धुंधले ख्वाब
उजाल
रही हूँ,
रेशम के
अपने
पल्लू में,
लौ को
मैं
संभाल
रही हूँ....

मंद
रोशनी
बिखर
रही है,
सोचें
मेरी क्यों
डर स़ी
रही है,
परवाना
कोई
चला
ना आये,
दर्द के
पल को
टाल
रही हूँ,
रेशम के
अपने
पल्लू में,
लौ को
मैं
संभाल
रही हूँ....

काँप रही
मासूम
हथेली,
इतनी
तपिश
कभी
ना झेली,
लब पर
तेरी नज़्म
सजाये,
खुद को
मैं
बहला
रही हूँ,
रेशम के
अपने
पल्लू में,
लौ को
मैं
संभाल
रही हूँ....

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