Monday, March 29, 2010

ज़िन्दगी.....

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जिन्दगी नहीं
संजीदगी
बसी हो
उदासियाँ,
महल नहीं है
कोई
छाई हो
जहां
खामोशियाँ......

ज़िन्दगी
नाम है
जिंदादिली का,
एक
रंगीन सपना
आँख
खुली का...

ज़िन्दगी है
एक नगमा
गुनगुनाया जाये,
एक रक्स
झूम कर
खुद को
डुबाया जाये...

ज़िन्दगी है
मोहब्बत
जिया जाये,
अमृत है
अनमोल
पिया जाये...

हर लम्हा
खुशियों में
भिगोया जाये,
जो है बस
'यहीं और अब'
अपनाया जाये...

हंसी रौं रौं की
खुदा की
इबादत है,
हंसने
मुस्कुराने से
इंसानियत
सलामत है.....

(एक पुरानी अन-पोस्टेड रचना)

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