Saturday, May 1, 2010

आईना

अप्सरा कि तरहा है सौंदर्य था उसका. मगर हर वक़्त दूसरों कि नज़रें देखती रहती थी. उसके लिए अपने 'conviction'से अधिक दूसरों कि 'opinion' मायने रखती थी.देखिये कैसे सोचती थी वो :

"अच्छा होता
यदि
आईना
नहीं होता
हम वही
समझते
जो लोग
हमें कहते.

वैसे भी तो
हम
दूसरों की
जिन्दगी ही तो
जीते हैं. "

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ना जाने यह उसकी खीज थी या आत्मस्वीकृति. कुछ भी हो उसका यह कलाम मुझे रास नहीं आया. उसने ना जाने किस अपेक्षा से मुझे मेरी 'opinion' अपनी इस poem पर पूछी थी, मेरी लेखनी ने वही कहा जो मैं सोचता था......

मेरा confession है यह मित्रों कि ना जाने क्यों मुझे उसके सोचों के विपरीत बोलना comfort zone में ले आता था.

अच्छा है जो
आईना है
गर ना होता
आईना
तो हम
खुद को कभी
ना जान पाते.
दूसरों को
वह दिखाते
जो हम नहीं होते.
जीने को
जीते तो हैं
हम अपनी ही
जिन्दगी
मगर चाहतें हैं
हर लम्हे
दूजों कि तरहा
होना
दिखना या
ऐसे ही किसी
भ्रम में
डूबे रहना.

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