Sunday, May 30, 2010

बारिश : चन्द नज़ारे

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शैतान बच्चों का
उछालना पानी को
एक दूजे पर,
शांत बालकों का
कागज़ की
नाव चलाना,
स्कूल का ‘रैनी डे’
घोषित करना...

भीगते भीगते
दोस्त के
घर चले जाना,
उसकी रसोई से
उठती
अजवायन वाले
परांठों की
नथनों में खुशबू,
आम के आचार से
उसके मेल की
परिकल्पना….
दोस्त का इशारा,
और
बात बेबात
वहीँ जम जाना,
नाक की बात
मुंह तक
पहुचने का
सपना
साकार हो जाना,
फिर चची का
प्यार से परोसना,
ना ना करते
पूरी पेट-पूजा कर लेना,
तुष्टि की डकार
फिर गिल्ली डंडा खेलना..


फूट पड़ना
जवान दिलों में
पहली बौछार में
भींगने की तमन्ना,
परदेशिया की
प्रेमिका का
लाखों का सावन
बीते जाना,
भीगी अंगिया
भीगी चादर,
कड़कती
बिजलियों में
घबराहट
और
गर्माहट
भरा आगोश,
आशाओं का
उभर जाना,
मन मयूर का
नाच उठाना,
उमंगों का
अनूठा आलम,
मीठी स़ी
टीस क्यों है
नामालूम,
उसको सोचना
और
उसका सोचना,
होले होले
मन की
गिरहों को
खोलना,
तड़फना …
और
तड़फते हुए
मुस्कुराना...

बाबा का
थम थम के
डरते डरते
चलना
मैया का
टप टप बूंदों को
कोसना,
सावन के झूलों की
धुंधली स़ी यादें,
बरसात की
उस अँधेरी रात को
करना याद
जब मैया
अचानक
प्रसव पीड़ा से
हुई थी व्याकुल,
उस मेह-अँधेरी
रात में
डॉक्टर दीदी का
तकलीफ कर
चले आना
मानो देवी हो,
अब ऐसे लोग कहाँ की
हताशा…,

बरसना
बंद होने पर भी
छाता ताने रहना
ना जाने कब
बरस जाए बादल ,
जोड़ों में बढ़ता दर्द,
दुखते पीड़ते पैर,
घर पहुँचने में हुई देर,
गरमागरम
चाय की प्याली,
दो चार बचे दांतों से
नीवाये पकोड़ों को
कुतरना,
बहु के सिले सिले से
ताने
बचों की
किलकारियां
बेटे का मौन
दृष्टा भाव के संग,
और
यादों में खोकर
सपनों के साथ
हे प्रभु !
कहते सो जाना……

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