Monday, May 31, 2010

अपनत्व (Deewani Series)

# # #

उसके प्यासे शब्द कुछ इस तरहा बातें करते थे:



"अपनत्व चाहिए !

कोहरे भरे
धुंधलेपन में
कुछ भी
दिखाई
नहीं देता....

गली कूंचों में
ढूँढा
महल-बागों में
ढूँढा....

मिल भी जाता
यदि
मैने बाहें
फैला दी होती.

__________________________________________________________________

कैसे समझता उसे कि:

अपनत्व की
नदी
बाँहों से नहीं
ह्रदय से
निकलती है.
सपनों में देखे
संसार को
छुआ है कभी
तू ने ?

अपनापन
'यदि' से
दूर है
बहुत,
मिलना है तो
बाहें नहीं
दिल
खोल के
मिलो
मुझसे.

No comments:

Post a Comment