Sunday, May 2, 2010

चिर लक्ष्य की यात्रा.....( A Note to Myself)

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ठहर जाता हूँ
चलते चलते
रोक कर
गति को
अपनी.......

देखता हूँ
फिर से
स्वयम को,
झाड़ता हूँ
गर्द
जो जमा दी है
समय ने,
जाँचता हूँ पुनः
पथ को
मानचित्रों से,
कर लेता हूँ
पुनर्विचार
गंतव्य पर भी....

करता हूँ
अनुभव
पवन के प्रवाह,
वनस्पति की
हरितमा,
जल की गहनता,
पर्वत कि दृढ़ता,
सहजीवियों की ऊर्जा
एवं
प्रभु की उदारता का,

घटित होता है
संबोधन
स्वयम को :
जिया जाता नहीं
जीवन समग्र
पूर्वाग्रहों के
सहारे,
देता है
अस्तित्व हमें
अवसर
संशोधन के,
किन्तु
खोये रहते हैं
हम
अहम् पोषण और
अन्यों के
अनुमोदन में,

लेकर
नयी शक्ति
सौल्लास
बढ़ जाता हूँ
फिर से
चिर लक्ष्य की
यात्रा में...

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