Thursday, May 27, 2010

कृतज्ञ....

कृतज्ञता
होती है
अभिव्यक्ति
संवेदनशीलता की
दूसरे के
अंतर्मन को
छूने की
किसी के
भावों को
समझने की...

कृतज्ञता हेतु
वांछित है
उदारता मन की,
होती है
अनुभव
प्रसन्नता
देने में
बस देने में
क्योंकि :
विस्तार है देना
संकुचन है लेना…

कृतज्ञता ज्ञापन
प्रतिफल है
अताम्विश्वास का
स्वयं-आस्था का
विनम्रता का
अन्तः बाह्य की
एकात्मकता का...

कृतज्ञता है
एक स्थिति
जहाँ नहीं है
अपेक्षा
नहीं है
आसक्ति
नहीं है
विरक्ति
है बस प्रेम
प्रेम ही प्रेम...

मेरे अहंकारी मन !
जो भी हुए हैं
कृतज्ञ,
तर गए,
प्रेम के निशान
कोटि हृदयों में
रख गए,
मेरे ह्रदय में
बसे परमात्मा
दे मुझे
आलोक
कृतज्ञ होने का....

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