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आज फिर
होगा पैदा
एक छद्म शहीद,
शमशीर से नहीं
ना ही बन्दूक से,
बनेगा वुजूद उसका
एक
ईमानदार
ज़हीन
जिम्मेदार
कलम से,
जो बनी है
करने
हिफाज़त
आम आदमी की,
जिल्दों में लिखी
कानूनी दफाओं के
सहारे.....
हो गया था
इन्साफ वहीँ
जो मारे गए थे
जुर्म को
अंजाम देते,
बीतें हैं
महीने
एक सच को
सरंजाम देते...
पढ़ी जाएगी
फिर से किताबें
कानून की,
ना ख़त्म होगी
कहानी
इस खौफनाक
जूनून की...
पत्तों का कर के
इलाज़
नहीं बचा सकते हैं
हम शज़र को,
देखना होगा
हमें जड़ों को
मिटाने
नफ़रत के
कहर को....
मैं हूँ
औरों से बेहतर
मैं हूँ
सब से सच्चा
कहेगा जब तक
यह
कोई भी
मज़हब-ओ-फिरका,
नहीं वह दीन
ना है ईमां
वह तो है
महज़ खोखली
इंसानी अना का
चरखा...
फिरकों के
दायरों से
रूहानी बातों को
निकालना होगा
इंसानियत को
बस
इंसानियत के
नाते
संभालना होगा...
करना होगा
खात्मा
तंग
सोचों का,
जलाना होगा
घाव को
छोड़ कर
इलाज़
खरोंचों का...
सियासतदानों और
मज़हबी मक्कारों को
सबक
सिखाना होगा,
धर्म को
बाहिर
इबादतगाहों से
निकाल
दिलों में
लाना होगा...
मज़हब नहीं है
ज़ज्बा सड़क का
इसको
इन्सां का
जाती मसला
बनाना होगा,
नफरत और
बैर कराने वाली
हर किताब से
इन्सां को
आज़ाद
कराना होगा...
दहशत गर्दी के
कारखाने
रहेंगे
बदस्तूर ज़ारी,
किसी एक को
लटका देने से
ना मिट सकेगी
बीमारी...
ना जाने क्यों
हम
भरमा जाते हैं,
भूलाकर
सब कुछ
नादानी से
जश्न
मनाये जाते हैं...
ठप्पे
पैरहन से
नामों के
मिटाने होंगे,
इंसानियत के
हक में
बरसों के
थोथे
रस्म-ओ-रिवाज़
भुलाने होंगे...
पैदा होगा
ज़मीं पर
एक नया इन्सां
जो ना
हिन्दू होगा
ना क्रिस्तान
ना मुसलमाँ.......
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