Monday, May 10, 2010

प्रिये मैं गीत अधूरा हूँ...

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प्रिये मैं गीत अधूरा हूँ...

जीवन को परिभाषित कर
पल प्रतिपल मैं जीता हूँ
चूक तनिक स़ी हो जाने से
अंतर अपने में रोता हूँ
वाद्यध्वनी से घिरा हुआ
मैं एक राग बेसुरा हूँ
प्रिये मैं गीत अधूरा हूँ...

झूठ दिखावे की यह दुनिया
मैने सतत बनायीं है
उसके प्रतिफल में ही मैं ने
दौलत शोहरत पाई है
पटल आवरण में लिपटा
एक पाखंडी मैं पूरा हूँ
प्रिये मैं गीत अधूरा हूँ...

मैने अपने जीवन क्रम में
मात्र स्वार्थ से प्यार किया
हेतु विजित करने औरों को
शब्दों का श्रंगार किया
ठोस दिखाई देता मैं,यदि
गिर जाऊँ तो चूरा हूँ
प्रिये मैं गीत अधूरा हूँ...

अट्टालिका जो भव्य दिखती
महल ताश का समझो तुम
स्वविकास के नारों को
जाल नाश का समझो तुम
पवन के झोंके से गिर जाऊँ
मैं नींव नहीं कंगूरा हूँ
प्रिये मैं गीत अधूरा हूँ...

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