Thursday, May 13, 2010

क्या चाहते हो...

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मालूम है तुम को, क्या चाहते हो
पूछो ना खुद से के, क्या चाहते हो.

तूफाँ सुनाये ना लोरी किसी को
सोने का ज़ज्बा है, क्या चाहते हो.

गाफिल हो पीकर के रिश्तों का गांजा
उन्हें पूछते हो, क्या चाहते हो...

देखते हो सबको सिवा खुद के यारां
मुड़ के तो देखो, क्या चाहते हो.

बहारों में गाते हो नगमे खिजाँ के
मुरझाये हो तुम तो, क्या चाहते हो.

आग में तलाशोगे तासीर-ए-ठंडक
जल के ही जानोगे, क्या चाहते हो.

ज़माने से शिकवे किये जा रहे हो
जरा खुद को देखो, क्या चाहते हो.

भागने हकीक़त से राहत नहीं है
तसव्वुर की दुनिया से, क्या चाहते हो.

साँसों को गिनना ज़िन्दगी नहीं है
जीयो तो जानोगे, क्या चाहते हो...

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