Saturday, May 22, 2010

अरके इन्फ़िआल

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हर लम्हा उनको तज़िक्रा -ए-गैरों का ख़याल है,
ज़िन्दगी उनके खातिर एक बाज़ीचा-ए-अफ्ताल है.

इस लम्हे और..उस लम्हे कुछ और जलवे उनके
ऐसी सूरत में ऐ दिल कुछ कहना मुहाल है.

इख्तिलात के अन्दाज़ को ना पूछें तो अच्छा
ज्यूँ ज्यूँ जाये बढ़ता के उठते सवाल है.

कहते थे अल्फाज़ हमारे होतें है अन्दोहरुबा
सोज़-ए-निहाँ से माथे पे आरके इनफ़िआल है.

बाज़ आये हम इश्के-पुर-अर्बदा से मेरे मौला
यह कैसी है हकीक़तें है कैसी मिसाल है.

(तज़िक्रा -ए-गैर=दूसरों कि चर्चा. बाज़ीचा-ए-अफ्ताल=बच्चों का खेल. इख्लितात=मेल-जोल
अन्दोहरुबा=पीड़ा दूर करने वाले. सोज़-ए-निहाँ=छुपी हुई जलन. अरके इन्फ़िआल=पश्चाताप रुपी पसीना. इश्के-पुर-अर्बदा=झगडालू प्रेम .)

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