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( उपालम्भ और प्रेम का यह गीत हमारे फोल्क-सोंग्स से प्रेरित है, जो हमारी हर भाषा और बोली में पाए जाते हैं-और माटी की सुगन्ध लिए सब जगह गए- गुनगुनाये जाते हैं----मेरे usual अन्दाज़ से थोड़ी स़ी हट कर है यह पेशकश, उम्मीद है आप सब का स्नेह मिलेगा इसको भी, सादर.....विनेश)
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बालम तुम हो कैसे
यह जाने ज़माना,
रंगीन मस्तियों को
क्यूँ हम से छुपाना !!बालम………..
आये हो कहाँ से
सजन यह तो बताना
माथे का पसीना
कहे सब फ़साना !! बालम………
दैय्या री उसका तोहे
नज़रियाँ लगाना
बहारों के मौसम में
तेरा मुरझा जाना !!बालम…….
धूप है करारी
तेरा यूँ आना जाना
छांव में टुक बैठो
कहे हडबडाना !!बालम……….
आँचल का यह पंखा
तोहे लागे सुहाना
तेरा यूँ ही गाना
और यूँ गुनगुनाना !!बालम……..
सुकून है यहाँ पे
लज्जत मेरे जाना
बस रहना यहीं पर
भूल उसको तू जाना !! बालम……
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बालम तुम हो कैसे
यह जाने ज़माना,
रंगीन मस्तियों को
क्यूँ हम से छुपाना !!बालम………..
आये हो कहाँ से
सजन यह तो बताना
माथे का पसीना
कहे सब फ़साना !! बालम………
दैय्या री उसका तोहे
नज़रियाँ लगाना
बहारों के मौसम में
तेरा मुरझा जाना !!बालम…….
धूप है करारी
तेरा यूँ आना जाना
छांव में टुक बैठो
कहे हडबडाना !!बालम……….
आँचल का यह पंखा
तोहे लागे सुहाना
तेरा यूँ ही गाना
और यूँ गुनगुनाना !!बालम……..
सुकून है यहाँ पे
लज्जत मेरे जाना
बस रहना यहीं पर
भूल उसको तू जाना !! बालम……
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