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लेकर
सागर की
अनगिनत
लहरों से
अंशदान,
रचता है
भानु
अमृतमय
मेघों को,
लौटाते हैं जो
बरस कर
प्राप्य
लहरों का,
यही तो है
प्रमाण साक्षात्
सृष्टि के
संतुलन का...
सृजन
और
विसर्जन
रखतें हैं
गतिमान
अखिल
ब्रह्माण्ड को,
करतें हैं
हम
मिथ्या
अभिमान
स्वयं के
भ्रमित
मन्तव्य का,
करके विस्मृत
बिंदु
निज-गंतव्य का,
जो होता हैं
आधीन
सृजन
और
विसर्जन की
अनवरत
प्रक्रिया के....
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