Monday, September 20, 2010

मुरझाया

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वक़्त ने
करवट ली
एक फूल खिला
एक मुरझाया
जो खिला वो
शास्वत हो गया
खिला गया
तन-मन को
भर दिया
महक से
उसने
घर आँगन को
जो खिला
वह पुष्प था
अन्तरंग के
उद्यान में.....

जो मुरझाया था
वह फूल था
बहिरंग
उपवन का
गिर कर जमीं पर
हो गया था जो
शुमार
माटी में
दे रहा था
खुराक नयी पौध को
फिर से फूलों को
खिलाने के लिए.............

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