Monday, September 20, 2010

हाथी के दांत.....

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(रोजाना की जिन्दगी में आप और हम बहुत कुछ ओब्जर्व करतें हैं. बहुत छोटे छोटे ओबजर्वेशन को शब्दों में पिरो कर आप से बाँट रहा हूँ……नया कुछ भी नहीं है इन में बस आपकी-हमारी ओब्जेर्व की हुई बातें है सहज स़ी…साधारण स़ी.)
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वो कहते थे :

दया मूल है
धर्म का,
दान करना है
शोभा करों की,
सद्वचन सुनना
सार्थकता
कानों की,
बोलना मृदु-वाणी
उपादेयता
जिव्हा की
प्रभु की भक्ति
सम्पूर्णता
जीवन
की ....


देखे गए थे वो :

गरीब बाल-मजदूर को
पीटते हुए
कौड़ों से,
खरीदते हुए
बिस्कुट सड़े
बाढ़ पीड़ितों के लिए,
सुनते हुए
पर निंदा
कानों से,
जुबान से
देते हुए
गालियाँ,
लेते हुए
सस्ता मिलावटी घी
पूजा के लिए,

अनुभव किया :

हाथी के दांत
हुआ करते हैं
दिखाने के और
और
चरने के और….

पाखण्ड
ना जाने क्यों
बन गया है
अन्दाज़
जीने का हमारा...


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