Thursday, September 16, 2010

फुसुन्तराज़ी.......

# # #

दावत में उनके जगह मेरे, मेरी ग़ज़ल गई.
आशिक के हर शे’र पे मासूका जल-जल गई.

उनकी नज़रों का असर था के फुसुन्तराज़ी
बीमार को लगा की तवियत संभल गई.

बड़े अरमान से चलाये थे हम ने हल जमीं पे
बारिश ना हुई तो यारों बातिल मेरी फसल गई.

तू है खुदा कांटो का जानते हैं सब कोई
तेरी हर बात जाने क्यूँ राह-ए-अदल गई.

कर के क़त्ल तेरा निकला था मैं महफ़िल से
देखा तुझे जिंद यूँ क्यों खबर-ए-क़त्ल गई.

बसाया है उसने घर संग मेरे रकीब के
बातें उडी उडी स़ी मैदान-ए-जदल गई.

नाम लेने में रुक क्यों जाता हूँ मैं
मुझसे रिश्ते की बातें बन के मसल गई.



फुसुन्तराज़ी=जादूगरी, अदल=न्याय, जदल=युद्ध, मसल=कहावत.

No comments:

Post a Comment