Saturday, September 25, 2010

सौन्दर्य-सौष्ठव

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सौन्दर्य
श्रंगार
नहीं मोहताज़
यौवन
और
सौष्ठव को ..
मन की तरंगे
करती जब
उत्फुल्ल
देह अभिनव को,
कान्ति
करे
आलोकित
रौं रौं को...
सुगंध
मादक
भावों की
भावे
मस्त
मधुकर को,
दे जाती
मधुर
संगीत
हर स्वर को...
प्रवाहित
प्रेम नीर
शिखा से
पर्यन्त
पाद-अंगुष्ठ,
है दर्पण
ईर्ष्यालु
लख कर
बिम्ब
अभिष्ठ...

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