Saturday, September 4, 2010

नज़र आता है

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मुंसिफ के हर फैसले में इन्साफ नज़र आता है
मन का किया इशारा हमें बाप नज़र आता है.

सुन सुन के समझते हैं बातें क्यों दिल कि
फांसी का फंदा हमें मुबाफ़ नज़र आता है.

होंश संभाले थे जब से पाई जिल्लत हमने
झूठे रिश्तों का एहसास.. शफ्फाफ नज़र आता है.

बहता है खूँ सर से चोटें खाकर उनसे
ज़माने को यह रिश्ता कोहकाफ नज़र आता है.

झूठन फेंक के मुझ पे कर दी है फ़र्ज़-अदाई
इसमें लिल्लाह उनको अल्ताफ नज़र आता है.

रगों में दौड़ता है खामोश खूँ जो है
रस्मों से बड़ा इन्सान साफ नज़र आता है.

कैद हुए जा रही है नींद कि परियां चंचल
सर-ए-शाम मुअत्तर तेरा गिलाफ नज़र आता है.

इश्क को कहते क्यूँ मुश्क न पूछो मेरे यारों
एय अहू मुझे हरसू नाफ नज़र आता है.

न पूछो हाल हमारी फ़ित्रत-ए-जब्त का यारों
गुनाह उसका हर क्यूँ मुआफ नज़र आता है.

मुंसिफ=न्यायाधीश मुबफ=केश बंधने का फीता (हैर-रिब्बों)
जिल्लत=अपमान शफ्फाफ=पारदर्शी कोहकाफ=काकेशिय का सुन्दर पहाड़
अल्ताफ=दया, कृपा मुअत्तर=सुगन्धित गिलाफ=खोली मुश्क=कस्तूरी
अहू=हरिण(दीर) हरसू=चरों तरफ नाफ=नाभि. फ़ित्रत=स्वभाव
जब्त=सहनशीलता

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