Thursday, September 23, 2010

पारदर्शिता...........

# # #

(रोजाना की जिन्दगी में आप और हम बहुत कुछ ओबजर्व करतें हैं. ओबजर्वेशन करीब करीब हम सभी के होतें हैं. बहुत छोटे छोटे ओब्जेर्वेशन शब्दों में पिरो कर आप से बाँट रहा हूँ……नया कुछ भी नहीं है इन में बस आपकी-हमारी देखी, जानी और समझी हुई बातें है सहज स़ी…साधारण स़ी.)

_______________________________________________________
वो कहा करते थे :

नारी को
अपने विचारों को
व्यक्त करने का
अधिकार
पुरुष से कहीं कम नहीं,
उसे भी है आज़ादी
जीने की तौर पे अपने,
जब है मेरी जीवन-साथी वो
उसकी सोचें
उसके मशविरे
रखते हैं मायने
ज़िन्दगी में उतने ही
जितने कि मेरे.
ज़रूरी नहीं हैं
उसका मेरे हर फैसले से
सहमत होना....

देखा गया था :

जब भी वह बोलती
किसी मसले पर
कहते थे वे
चुप रहो,
नहीं जानती
तुम कुछ भी,
अपने मन से कुछ खर्चा कर दिया
अपने किसी पुरुष सहपाठी से
अचानक मिलने पर
गरमजोशी दिखा दी
दो एक दिन
अपने पसंद की
सब्जी बनवा ली
बच्चों के लालन-पालन
और
पढाई पर
कुछ अहम् फैसले ले लिए
परिवार के किसी स्वार्थी
एवम
संकीर्ण मनोवृति के
सदस्य की
युक्ति-संगत
व्याख्या कर दी----
उनकी बुराई के लिए नहीं
पारिवारिक भलाई की
पृष्ठभूमि में,
महंगाई से लड़ने
समय और समर्थ्य के
सदुपयोग हेतु
कुछ काम करने की
सोच बना-ली,
किसी दिन
उनसे अधिक
आकर्षक व्यक्तित्व की
झलक
दिखाई देने लगी उसमें,
कभी कर बैठी वो
सहज जिज्ञासा
उनके कार्य-कलापों पर,
चढ़ जाता था
उनका पारा
सातवें आसमां पर,
बन जाते थे श्रीमान
दुर्वासा कलियुग के,
और
होने लगती थी
बौछार शापों की,
असंसदीय भाषा में ......

उचित
मान
देवर के प्रेम प्रसंग को,
उसके शादी के लिए
चयन को जब
बताया था
युक्तिसंगत
उसने ,
हो गई थी हवा
आज़ाद-खयाली उनकी,
जाति, रुतबा, चरित्र
ना जाने कितने
तर्क-कुतर्क
गए थे जुबाँ पर
उस सुलझे हुए
इंसान के,
और कहा था
उन्होंने:
मैं हूँ
मुखिया घर का
फैसले सारे करना
अधिकार है मेरा,
फ़र्ज़ है तुम्हारा बस
बिना
उठाये सवाल कोई,
मानकर उचित बस उसको,
करते रहना अनुसरण

यही तो है
भारतीय परम्परा अपनी ,
पति
को मन्ना परमेश्वर,
भरोसा करना पूरा उसका
है अपेक्षित तुम से,
क्या है तुम्हे संशय
मेरी
योग्यता
और

कुशलता
में ?

दे दी क्या
ज्यादा आज़ादी
तुम
को मैने,
इतरा रही हो बहुत तुम तो
क्यों फहरा रही हो
झंडे नारी
-क्रांति के ?

किया था अनुभव मैने :

सटीक
थी कितनी
बात उन बूढ़े बाबाजी की,
होंदी है कुछ गल्लें केने दी
और कुछ कन्ने दी.”
फर्क यह कथनी करणी का
मिटेगा
जब रिश्तों में,
आएगी पारदर्शिता
और

बढेगा सौहार्द
आपसी संबंधों में ....

No comments:

Post a Comment