# # #
वक़्त
ले जाता है
साँझ ढरे
घर अपने
अँधेरे के
छेदों भरे,
ढीली ढाली
बुनावट वाले
बोरे में
सितारों के
दाने
भर कर...
पूरब कि
चाकी में
पीस कर
गृहणी उषा
बना देती है
एक गरमा-गरम
रोटी
कहा जाता है
जिसे
सूरज....
(राजस्थानी बात है-जिसे नानीसा बालसुलभ जिज्ञासा के जवाब में बताती थी, इसी आशय की राजस्थानी कवितायेँ भी अलग अलग रूप में लिखी गई है.)
वक़्त
ले जाता है
साँझ ढरे
घर अपने
अँधेरे के
छेदों भरे,
ढीली ढाली
बुनावट वाले
बोरे में
सितारों के
दाने
भर कर...
पूरब कि
चाकी में
पीस कर
गृहणी उषा
बना देती है
एक गरमा-गरम
रोटी
कहा जाता है
जिसे
सूरज....
(राजस्थानी बात है-जिसे नानीसा बालसुलभ जिज्ञासा के जवाब में बताती थी, इसी आशय की राजस्थानी कवितायेँ भी अलग अलग रूप में लिखी गई है.)
No comments:
Post a Comment