Wednesday, September 1, 2010

सम्बल और कमजोरी...

तुम बन के आये थे
सम्बल
मेरी जिन्दगी में
वक़्त गुजरा
कमजोरी
बन गए.....

चाय की कई
प्यालियाँ,
सड़क किनारे
बिकते
चने चबैने,
बर्फ के
रंग बिरंगे
लच्छे,
खट्टे मीठे
पानी वाले
गोलगप्पे,
झील का
किनारा,
पार्क के
खुशनुमा फूल,
कॉलेज का
लान
और
उसपर खड़े
छायादार
दरख्खत,
थियेटर फेस्टिवल,
शास्त्रीय संगीत की
महफिलें,
काव्य गोष्ठियां,
कृष्णमूर्ति की
वार्ताएं,
रजनीश के
ध्यान शिविर,
सब थे गवाह
तेरी-मेरी दोस्ती के....
क्या हुआ
अचानक
तुम क्या से
क्या हो गए,
जमीं से उड़कर
आसमां में खो गए,
हकीक़त से बदल
तसव्वुर हो गए,
हलके अंतर्मन से
होकर तब्दील
भारी स़ी
तिजौरी बन गए......

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