Monday, August 3, 2009

अवसर...

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देता रहता है
अवसर
निरंतर
अस्तित्व हम को,
हाथ हमारे
ना जाने कहाँ
हो जातें हैं
व्यस्त
कभी ढांपने शर्म को
कभी पकड़ने
उन चीजों को
जिनकी होती नहीं
अहमियत,
कभी मांगने दुआएं
भूला कर
खुदा की बख्सी
ताक़त को,
और
गुज़र जातें हैं
अवसर
सामने से हमारे,
कारवां जाता है गुज़र
और हम
देखते रहतें हैं
बस गुबार....

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