Wednesday, August 19, 2009

मुल्ला का ज़नाज़ा.......

मेरी रचनाओं पर ऑफ-लेट देखा कि दो पाठिकाओं के कमेंट्स बहुत गज़ब होते हैं. वे हैं बरेली-उत्तर प्रदेश निवासिनी श्रीमती मुदिता गर्गजी और हैदराबाद ( आंध्र प्रदेश) कि मोहतरमा महक अब्दुल्लाजी. दोनों ही मेरे दोस्त मुल्ला नसरुद्दीन को अपनी कलम से नवाजती हैं....इस-से यह इन्फेरेंस ड्रा किया जा सकता है कि दोनों ही, मेरी हो या ना हो उनकी प्रशंसक ज़रूर है..... और भाइयों और बहनों ! मुदिताजी ने तो मैदान में जमालो बी को भी उतार दिया है मैदान में, अतुलजी के सक्रिय सहयोग के साथ. फिर भटक गया, हाँ तो मैं कह रहा था कि दोनों के कमेंट्स बहुत ही ज़हीन और जरा हट कर होते हैं, कभी कभी तो रचना पर ऐसे हावी हो जाते हैं....और लिटरली मुझे 'दुम' दबा कर खिसकाना होता है. जहां मुदिता जी तरंगों और जागरूकता कि बातें कर गुह्य ज्ञान का परिचय देती हैं वहीँ महकजी कभी मेरे पुराने खाते खोलती है तो कभी दार्शनिकता के अंदाज़ में चुटकी लेती है. यह बात तो आप भी मानेंगे कि इन दोनों विदुषी महिलाओं की 'मथुरा तीन लोक से न्यारी होती है." कभी कभी तो दिल करता है कि इनकी पेशी 'कल-तक' टेलीविजन चेनल के 'दब्बू बावला' के सामने कर, 'टेढी बात' करा दूँ, मगर इनके कमेंट्स से मेरी रचना की TRP बढती है इसलिए खुद को रोक लेता हूँ. दोनों ही में 'लाडो' की अम्माजी सी तुरत बुद्धि है और सब टीवी की मणिबेन सी 'different approach' . इसी क्रम में दोनों कि प्रतिक्रिया सामान्य से परे होती है, और कभी कभी तो ऐसा लगता है कि दोनों ही हम आम इंसानों कि तरह नहीं सोचती....आज इनकी चुगली करूँगा आपसे, जिस से आप भी मेरी बात में 'एस्सेंस' है, इस बात को अपना समर्थन देंगे.

हाँ, मुल्ला नसरुद्दीन को , आप जानते हैं, कि चीजों को इकठ्ठा करने की लत है, 'deo' और 'perfume' की खाली बोतलें हों, क्रीम पौडर के खाली डिब्बे हो, शौपिंग मॉल के खाली कागज़ या प्लास्टिक के थैले हो, घी तेल के खाली डिब्बे, दवा, टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम कि नुचुदी ट्यूबें हो, पुराने अख़बार रिसाले या पिज्जा हट/डोमिनोस के पम्फ्लेट्स हो, घिसे झाडू के अवशेष हो, पुराने हाउस अप्ल्लायिसेस, छाते, फटे पुराने कपडे और भी ना जाने ऐसी कई चीजें मुल्ला जमा कर के रखते हैं. और तो और, मुल्ला अपने यहाँ सहन में उगे पेड़ों के पत्ते, बाथरूम आदि टूटने पर निकला मलबा-यथा पुराना बेसिन, बाथ टब, कमोड, टाईल्स इत्यादि भी संग्रह करतें हैं-शायद चंडीगढ़ कि तर्ज़ पर रॉक गार्डन बनाना हो......
कहने का मतलब यह है कि मुल्ला को पुरातत्व का पूरा शौक है, पेसन है. हाँ तो मुल्ला का घर कबाड़ से भर गया था.....मुंशी-पार्टी ने घोषणा कि थी बढ़ते मलेरिया और swine flu के प्रकोप को देखते हुए, ऐसे आदमियों पर रेड कि जाय, दण्डित किया जाय जो कचरा जमा करते हैं, (पड़ोसियों के घर या सड़क पर फेंक निजात जिन्होंने नहीं पाई हो). मुल्ला जैसे कई क्युरियो के शौकीनों पर आफत आ गयी, शहर में गहमागहमी मच गयी. मुल्ला ने एक मिनी ट्रक भाड़े किया, और घर का सारा कचरा उसमें भरवा दिया ताकि शहर के बाहिर डंप किया जा सके. कचरे का परिमाण(qauntity) को देखते मुल्ला को बड़ा ट्रक भाड़े करना था, मगर मुल्ला तो हमेशा मितव्ययी रहे हैं आप उन्हें कंजूस कहें या कुछ और. यह मिनी ट्रक भी उन्होंने मुर्दाघर के सफाई कर्मचारी चित्लाल (जरी लाल का रेफेरेंस देकर) से सेटिंग कर अन- ओफिसिअली लगाया था. हाँ तो मिनी ट्रक पूरी भर गयी थी, चित्लाल बोला, "मुल्ला अब बस भी करो-इसमें जगह नहीं....मुल्ला बोलो एक आध सॉलिड आइटम भर लो...." चित्लाल गुर्राया, "तुम्हारा कुछ नहीं बिगडेगा, कचरा गिर गया तो सफाई निसपेटर हम ही को तो धरिबे करेगा....फालतू ठर्रे कि बाटली दो बाटली का खर्चा होगा....मेरी मुनाफे पर अभी भी प्रेसर है...मंदी में और कम हो जायेगा---कोई सरफिरा ईमानदार भेंट गया तो फैन कर देगा, लेने के देने पड़ जायेंगे."

आप जानते ही हैं, मुल्ला बोर्न जीनियस, लगा कहने, " हे हरी के जन, कहे घबराता है, हम हूँ ना, हम कचरे के ऊपर लेट जाऊंगा....मजाल कि कुछ गिर जाये." चेत्लाल भी एडवेंचर के मूड में था, अग्री हो गया. मिनी ट्रक-मुर्दाघर की राष्ट्रीय सम्पति-जिस पर राम राम, अल्लाह हाफिज़, गोद इस ग्रेट कैसे धार्मिक वाक्य अंकित हो, चालक मदहोश ठर्रा प्रेमी चेत्लाल, पीछे लदी है नाना प्रकार की गृहपयोगी प्राचीन वस्तुएं, और उन पर छे फ़ुट का तगड़ा पठान मुल्ला नसरुद्दीन फैला हुआ है. हाँ तो ट्रक गुजरती है एक घुमावदार fly-over से, उपरी पुलिया के किनारे मुदिताजी, महकजी और जमालोजी मंत्रणा कर रही है, किसी गूढ़ विषय पर.....नज़र पड़ती है ट्रक पर, देखते ही उनकी संवेदना को खुजली होने लगती है......कहती है :
मुदिताजी : "जागरूक होने की ज़रुरत है, देखो हट्टा कट्टा इन्सान बैमौत मार गया, कहते हैं ना इन्सान के साथ कुछ नहीं जाता, किन्तु घरवालों कि उदारता देखो उसका बाथरूम तक साथ भेज रहे हैं...ऐसा मैंने पढ़ा था कि मिस्र के पिरामिडों में सुल्तानों/मल्काओं कि ममियों के साथ रखा जाता है...कितनी सुखद बात है इस परम्परा का निर्वाह हमारे देश में किया जा रहा है वह भी इस आधुनिक युग में, सचमुच वायिब्स की बातें हैं....हर अच्छी बात के स्पंदन दूर तक यात्रा करते हैं....यह ज़नाज़ा जागरूकता का अनुपम उदाहरण है."
महक : "इंसान और कचरे में कोई फर्क नहीं करते आजकल के लोग, देखो ना इस बलिष्ठ व्यक्ति को कूड़े करकट के साथ फैंक दिया जायेगा.....काश ऐसा राजस्थान में होता.....इनको सम्मानपूर्वक चांदनी रात में बालू के स्वर्ण सामान टीलों पर रखा जाता, फैंका नहीं जाता, फिर विधिपूर्वक मिटटी को सुपुर्द किया जाता....राजस्थान कि परम्परा ही कुछ और है, आँखे नम हो रही है."
जमालो ने दोनों को सुना, और ठहाके मार कर हंसने लगी. लगी कहने :
" आप दोनों तो बुद्धिजीवी ही रही . अरे ! यह तो जिंदा मुल्ला है, देखा नहीं तोंद कपालभाती कर रही है, बुलाओ अतुल जी को किस्से का अच्छा प्लाट मिल गया है."
फ़िलहाल बस........




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