आसमान जो
तुम्हारे कमरे में है
वही तो है
महल में
झोंपडे में
मंदिर में
मस्जिद में
मयखाने में
कोठे में
अस्पताल में
बूचड़खाने में
यहाँ भी....वहां भी
उत्तर भी.... दक्षिण भी
पूरब भी.....पच्छिम भी
खुले में भी...बंद में भी......
एक वही तो है
बस में है जिसके
किसी भी
आकार प्रकार
माप परिमाप
रूप अरूप में
समा जाना
वैसा ही बन जाना
बिना कटे
बिना छंटे................
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