Saturday, August 22, 2009

मुल्ला के खानदान के इतिहास का एक पन्ना......

मानव मनोविज्ञान के ऐसे उदाहरण आप कि नज़र में भी ज़रूर आते होंगे. जैसे लोग जरा फ्रेश-मूड में होते हैं या फुर्सत में और मकसद सामने वाले को खुश करना होता है या सामनेवाले को ज्ञान की घूंटे पिलाने की मनसा होती है या महफिल में अपनी धाक ज़माने कि तमन्ना होती है या....(लिस्ट लम्बी हो जायेगी इसलिए विराम) , तो वे खुद के माजी (past ) के बारे में गौरवपूर्ण (या) चंचल चपल (या) समझदारी से भरे (या) निरापद बेवकूफी/बदमाशी का कन्फेसन लिए कुछ स्टेटमेंट्स देने लगते हैं और सची झूठी कहानियां भी सुनाने लगते हैं... ....किसी खोयी हुई चीज जैसे कि पेन, बटुआ, चाभी इत्यादि के मिलने पर भी मन इतना हल्का हो जा सकता है कि-प्यार आया रे प्यार आये गायन फूट पड़ता है और चर्चा के विषय जरा intimate हो जाते हैं ,,,,,,,अंगूर की बेटी को अंगीकार करने पर भी ऐसी स्थिति घटित होती है....जैसे मेरे एक बंगाली प्रोफ़ेसर मित्र थे जो व्हिस्की के दो पैग तक सामान्य बात चीत की भाषा बोलते थे, तीसरे के साथ साहित्यिक बंगला, चौथे के साथ स्पेशल वाली हिंदी और पांचवा आधा हलक से उतरा कि नहीं अपनी पास्ट ग्लोरी का व्याख्यान आंग्ल भाषा में फरमाने लगते थे....
ऐसा ही हुआ था हमारे साथ, याने मुल्ला और मेरे दरमियाँ.....कहने का मतलब जमालो से संगीता दी के आशीर्वाद से २५०००/ ऐंठ लिए गए थे......मुल्ला कि बल्ले बल्ले थी....पैसे उसीके खीसे में रहे.....मैं ठहरा आदर्शवादी बुद्धिजीवी किसी ना किसी आदर्श कि आड़ में गलत तत्वों कि मदद भी करता हूँ और खुद को संत कायम रखने के लिए प्रतिफल को हाथ नहीं लगाता......मुल्ला ने सोचा कि उत्सव किया जाय....ले आये एक टीचर्स कि बोतल, सोडे और कबाब अपने लिए, रियल जूस के कार्टून मेरे लिए और चनाचूर मेरे लिए, नान तड़का और शाही पनीर दोनों के लिए......मेनू उनका वेन्यु मेरा....लदे फदे आन पहुंचे मेरे घर.....मेरे पर एहसान जताते हुए हो गए शुरू....पीनेवालों को पीने का बहाना चाहिए.....बस कुछेक पेग्स के बाद मुल्ला सातवें आसमान पर, ध्यान लग गया था उनका.....निकल आये थे ब्रहम वचन : अमां मासटर ! बड़ी रिसर्च करते कराते हो, अपनी बंश परंपरा कि डींगे हांकते हो.....जानते हो मैं ऐसा क्यों हुआ....जो अपने निशाने को हमेशा मद्देनज़र रख कर फल कि चिंता बिना किये कर्म करता हूँ ?" मुझे लगा था मुल्ला महाभारत कल में चले गए हैं, खुद को अर्जुन और मुझे कृष्ण देखने लगे हैं. मगर मैं गलत था. मुल्ला कह रहा था, "मेरे इतने जहीन और मतलबी होने के कारण मेरे जींस है जो मेरे पूर्वजों से मुझे मिले हैं.....हम लोग लड्डन मियां के वंशज है जिनसे सुलतान खाने जहां लोदी का साबका पड़ा था."
मेरे सांस में सांस आई, क्योंकि यह खबर उतनी सनसनीखेज़ नहीं थी जितना जशवंत सिंह जी का जिन्ना के लिए अपने ख़यालात लिख छोड़ना.....मुल्ला कुछ इधर ही ठहर गए थे, महाभारत काल से बहुत पहिले. उस दिन मुल्ला ने अपने खानदान के इतिहास का जो सुनहरा पन्ना मेरे सामने पढ़ा उसको आप से शेयर कर रहा हूँ.
दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोदी का सिपहसालार खाने जहां लोदी बहुत दरियादिल इन्सान था. एक दिन उसका वाकिफ लड्डन मियां सुबह सवेरे उनके दौलतखाने पर हाज़िर हो गया था, खुद पालकी में और पीछे पीछे उसका गधा. लड्डन मियां बोले, "आज तो खिचड़ी खाने का बड़ा मन हो रहा है. लोदी ने कहा---अच्छा खिचड़ी बनवा देता हूँ, तब तक तुम थोड़ा मिठाई खा लो. लड्डन बोला---- जिस नौकर को मिठाई लेने भेजो उस टुक मेरे पास भेज देना ताकि उसे मैं अपनी पसंद बता सकूँ. नौकर आया तो लड्डन मियां बोला---भई मिठाई रहने दो...जाने में तुम्हे तकलीफ होगी...बस यह पैसे मुझे दे दो और तुम जल्दी से खिचडी तैयार करवा दो. खिचडी खाकर लड्डन बोला---भई खिचडी तो गज़ब जायकेदार थी, मैं तो बहुत ज्यादा खा गया हूँ...पालकी में बैठूँगा तो पेट दुखेगा. खाने जहां ने कहा-----मियां अपने गधे पर चले जाईये. लड्डन मियां बोले----मेरा गधा तो कूदता बहुत है. इस पर खाने जहां ने अपने अस्तबल से एक तगड़ा सा अरबी घोड़ा माँगा दिया. लड्डन ने कहा---- इस घोड़े पर तो जीन भी नहीं कसी हुई है. लोदी ने हुकुम देकर उसी वक़्त चांदी की जीन घोड़े पर कसवा दी. लड्डन मियां घोड़े पर बैठते हुए बोला ---इस घोड़े को घर पहुँच कर वापस भिजवा दूँ या मैं ही रख लूँ ? खाने जहां मुस्कुराया----मियां आप ही रखलें इस घोड़े को, मैंने इसे आपको दे दिया. लड्डन मियां तुरत घोड़े से उतर पड़ा. लगा कहने------मैं इस कीमती जानवर को कैसे रख सकूँगा ? मेरे पास तो कोई नौकर भी नहीं. खाने जहां ने कहा---मियां आप नौकर रख लें उसकी पगार हम दे दिया करेंगे. लड्डन मियां ठहरे एक नंबर पाजी....लगे कहने----मैं घोड़े कि खुराक का इन्तेजाम कैसे करूँगा ? खाने जहां ने उसी समय अपने खजांची को हुक्म दिया कि घोड़े कि एक साल कि खुराक इसी वक़्त लड्डन मियां के घर भिजवा दी जाये. लड्डन मियांबोला ----मुझे हर साल घोड़े के साज़, जीन, खुराक और सईस के खर्चे के लिए आपके पास एक आदमी भेजना पड़ेगा, बार बार आपको तकलीफ देनी पड़ेगी. मुझे अच्छा नहीं लग रहा. इस से तो अच्छा है मुझे आप पूरा एक गांव ही बख्श दीजिये.
खाने जहां लोदी ने उसी वक़्त अपने दीवान को बुलाया और लड्डन मियां के नाम बदायूं जिले का एक गांव लिख दिया.
लड्डन मियां को तस्कीन कहाँ. लगे फिर कहने---मैं आया था खिचडी खाने, आपकी मेहेरबानी, एक घोड़ा और एक गांव का मालिक बनके जा रहा हूँ. लेकिन मेरी पालकी के कहार खाली हाथ वापस कैसे जायेंगे, मेरा गधा भी ऐसे कैसे जायेगा...यह तो आपकी शान के खिलाफ होगा. खाने जहां ने उसी समय पालकी के कहारों को कपडे रुपये इनाम में दिए और गधे के लिए भी माकूल इन्तेजामात कराये. लड्डन मियां ने खाने जहां लोदी को तीन बार झुक कर सलाम किया और अरबी घोड़े पर सवार हो कर चल दिया.

ऐसी ही जहीन, चालाक, लालची और ढीठ खानदान से ताल्लुकात रखते हैं हमारे मुल्ला नसरुद्दीन.








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