अनुभव स्वयं के
ले आतें हैं हमें
समझ के बिंदु तक
छेह और नेह का
गोरखधंधा
समझा जाता है तभी.........
होते हैं जब हम
संबंधों में और
एकाकीपन में
संग संग
कर पाते हैं आत्मसात
शाश्वतता एकाकीपन की
बाँट पाते हैं खुशियाँ संबंधों में.........
है कैसी विडम्बना मेरे मन !
होते हैं हम जब जब संबंधों में
होना चाहते हैं हम एकाकी
जब होतें हैं हम एकाकी
खलता है एकाकीपन
तलाशते हैं हम
हो कर व्याकुल संबंधों को........
होते हैं विद्यमान
जब दो एकाकीपन
गहरे प्रेम में
बिना रचे कारा
एक दूजे के लिए,
होते हैं उपस्थित
छेह और नेह दोनों ही,
घटित होता है
कुछ बहुमूल्य........
ले आतें हैं हमें
समझ के बिंदु तक
छेह और नेह का
गोरखधंधा
समझा जाता है तभी.........
होते हैं जब हम
संबंधों में और
एकाकीपन में
संग संग
कर पाते हैं आत्मसात
शाश्वतता एकाकीपन की
बाँट पाते हैं खुशियाँ संबंधों में.........
है कैसी विडम्बना मेरे मन !
होते हैं हम जब जब संबंधों में
होना चाहते हैं हम एकाकी
जब होतें हैं हम एकाकी
खलता है एकाकीपन
तलाशते हैं हम
हो कर व्याकुल संबंधों को........
होते हैं विद्यमान
जब दो एकाकीपन
गहरे प्रेम में
बिना रचे कारा
एक दूजे के लिए,
होते हैं उपस्थित
छेह और नेह दोनों ही,
घटित होता है
कुछ बहुमूल्य........
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