मुल्ला से आपका तआरुफ़ कैसे हुआ ? यह सवाल मुझे बहुत से ख्वातीनों हज़रात ने पूछा है.लाजिमी भी है उनका पूछना, क्योंकि हमारी तहजीब में पहली मुलाक़ात किसी से होने के साथ कई सवाल नुमायाँ होतें हैं, जो इन्सान की जाती ज़िन्दगी से जुड़े होतें हैं. उनके जवाब आप चाहे सच दो या गलत, आप पर भरोसा नहीं किया जायेगा क्योंकि ज्यादातर लोग खुद को RAW के नुमायिंदे समझतें हैं.....
और मैं जवाब देते देते इतना पक गया हूँ की जो कुछ कहता हूँ झूठ कहता हूँ झूठ के सिवा कुछ नहीं कहता हूँ.
अब ऑरकुट की ही लें, मुझे पूछे गए सवालों की फेहरिस्त आप से शेयर करूँ : प्र: आप क्या करतें हैं ? उ: प्रोफेसर हूँ. प्र: कौनसी कॉलेज के ? उ: आजकल गेस्ट फेकल्टी हूँ. (फैंकता है.... ऐसा कभी होता है...) प्र: क्या पढातें हैं ? उ : ह्यूमन रिसोर्सेस मैनेजमेंट, फिलोसोफी, और कम्युनिकेशन स्किल्स....वैसे जनर्लिस्ट हूँ.....कुछ भी पढ़ा सकता हूँ, साइंस सब्जेक्ट्स को छोड़ कर.
प्र: फाइनेंस भी. उ: जी. (फालतू बात करता है कहीं हो सकता है ऐसा.....मेरे खानदान में कई मास्टर/प्रोफ़ेसर हैं क्या जानता नहीं...उंह ) प्र : आप अच्छा कमा लेतें होंगे? उ : जी प्र: कितना ? उ : बहुत सा. प्र: आप मेरिड हैं ना ? जी नहीं. प्र: ओह प्रोफाइल में कमिटेड लिखा है--तो आप बेचलर हैं ? उ: जी नहीं मैं अन्मेरिड हूँ. प्र: बेचलर और अन्मेरिड में क्या फर्क प्रोफ. ? उ: यह बात समझने की है या फोर्मेर प्राइम मिनिस्टर बाजपेयी जी से पूछने की है. (चरित्रहीन है बन्दा..अपना क्या ) प्र: आपकी नज्मों में तो किसी नाकामयाब मोहब्बत के संकेत मिलतें हैं.....कहाँ गयी दीवानी आपकी महबूबा....by-the-way वह तो मुसलमान थी ना और आप हिन्दू ? उ : जी हम एक नहीं हो सके. प्र: क्यों ? उ : क्या आप मेरी शादी कहीं करने पर तुले हैं.......मुआफ कीजिये प्लीज़ मुझे जाती सवाल ना पूछें. प्र: बस आखिरी सवाल सर ! आप राजस्थान के राजपूत कहतें है खुद को मगर प्रोफाइल में नेपाल का भी बताया है खुद को. उ :(सोचता हूँ इसका जवाब अच्छे से दूँ)- जी नेपाल का राजवंश और राणा वंश मूलतः राजस्थानी राजपूत वंश शिशोदिया से हैं, रिश्ते होतें हैं आपस में. मेरी मां राजस्थान से थी और उनका विवाह नेपाल में हुआ था. उ ; ओह ! (भाग गयी होगी मां इसकी किसी नेपाली के साथ-अपना क्या ? - लिखता ठीक-ठाक है...बातें भी अच्छी करता है.) दाल गली नहीं मगर आगे के लिए दरवाज़े खुले रखने हैं....कहेंगे ; "आप से बातें करना अच्छा लगा विनेशजी, टेक केयर....."
और मैं जवाब देते देते इतना पक गया हूँ की जो कुछ कहता हूँ झूठ कहता हूँ झूठ के सिवा कुछ नहीं कहता हूँ.
अब ऑरकुट की ही लें, मुझे पूछे गए सवालों की फेहरिस्त आप से शेयर करूँ : प्र: आप क्या करतें हैं ? उ: प्रोफेसर हूँ. प्र: कौनसी कॉलेज के ? उ: आजकल गेस्ट फेकल्टी हूँ. (फैंकता है.... ऐसा कभी होता है...) प्र: क्या पढातें हैं ? उ : ह्यूमन रिसोर्सेस मैनेजमेंट, फिलोसोफी, और कम्युनिकेशन स्किल्स....वैसे जनर्लिस्ट हूँ.....कुछ भी पढ़ा सकता हूँ, साइंस सब्जेक्ट्स को छोड़ कर.
प्र: फाइनेंस भी. उ: जी. (फालतू बात करता है कहीं हो सकता है ऐसा.....मेरे खानदान में कई मास्टर/प्रोफ़ेसर हैं क्या जानता नहीं...उंह ) प्र : आप अच्छा कमा लेतें होंगे? उ : जी प्र: कितना ? उ : बहुत सा. प्र: आप मेरिड हैं ना ? जी नहीं. प्र: ओह प्रोफाइल में कमिटेड लिखा है--तो आप बेचलर हैं ? उ: जी नहीं मैं अन्मेरिड हूँ. प्र: बेचलर और अन्मेरिड में क्या फर्क प्रोफ. ? उ: यह बात समझने की है या फोर्मेर प्राइम मिनिस्टर बाजपेयी जी से पूछने की है. (चरित्रहीन है बन्दा..अपना क्या ) प्र: आपकी नज्मों में तो किसी नाकामयाब मोहब्बत के संकेत मिलतें हैं.....कहाँ गयी दीवानी आपकी महबूबा....by-the-way वह तो मुसलमान थी ना और आप हिन्दू ? उ : जी हम एक नहीं हो सके. प्र: क्यों ? उ : क्या आप मेरी शादी कहीं करने पर तुले हैं.......मुआफ कीजिये प्लीज़ मुझे जाती सवाल ना पूछें. प्र: बस आखिरी सवाल सर ! आप राजस्थान के राजपूत कहतें है खुद को मगर प्रोफाइल में नेपाल का भी बताया है खुद को. उ :(सोचता हूँ इसका जवाब अच्छे से दूँ)- जी नेपाल का राजवंश और राणा वंश मूलतः राजस्थानी राजपूत वंश शिशोदिया से हैं, रिश्ते होतें हैं आपस में. मेरी मां राजस्थान से थी और उनका विवाह नेपाल में हुआ था. उ ; ओह ! (भाग गयी होगी मां इसकी किसी नेपाली के साथ-अपना क्या ? - लिखता ठीक-ठाक है...बातें भी अच्छी करता है.) दाल गली नहीं मगर आगे के लिए दरवाज़े खुले रखने हैं....कहेंगे ; "आप से बातें करना अच्छा लगा विनेशजी, टेक केयर....."
Meri Pahli Mulaqat Mulla Nasruddin Se.....
हाँ तो भटकाव आ गया.....सवाल यह था की मुल्ला से मेरा तआरुफ़ कैसे हुआ ?
मैं नया नया प्रोफ़ेसर लगा था हैदराबाद में. हमारे किसी अज़ीज़ रिश्तेदार के सौजन्य से मुझे रहने की जगह मिल गयी चारमीनार इलाके में-----एक दम हैदराबादी तहजीब का इलाका....आपस में मेल-जोल भी बहोत. कुछ दिनों में मैंने अपने इल्म के झंडे चारमीनार पर गाड़ दिए. मेरा अंदाज़ और एक्टिंग इतनी कुदरती थी की सब लोग मुझे बहुत ही मदद करने वाला और जहीन इन्सान समझने लगे थे . मेरे लिए भी नयी तहजीब में अच्छा खासा टाइम पास का जरिया था लोगों से मिक्स हो जाना और आप तो जानते ही हैं कि मेरी फ़ित्रत भी कुछ ऐसी ही है. खैर....
हाँ तो सन्डे का दिन था, मैं देर से उठा और बिना नहाये, पूजा किये अख़बार चाट रहा था और चाय की चुस्कियां लेते लेते कई कप खाली कर चुका था. आलस था कि स्किन डिजीज कि तरह मेरा साथ ही नहीं छोड़ रहा था......कहा भी जाता है ना स्किन डिजीज के मुआमले में-- ना तो रोग मरता है ना ही रोगी. (फिर भटक गया मैं यारों) .... हाँ तो पडोसी एक पागल को मेरे पास ले आये. उसमें कुछ खास मुआमला नहीं था. जवान आदमी,एकदम चुस्त और तंदुरुस्त. बस उसको एक बहम सा हो गया था कि दो मख्खियाँ उसके भीतर घुस गयी है. रात सो रहा था, नाक से दो मख्खियाँ अन्दर चली गयी. अब ये दोनों अन्दर भिन्न- भिनाती है. अब वह बैचैन है- ना सो सकता, ना खा सकता-सब अस्त-व्यस्त हो गया है. इलाज करवा डाले सब. अब मख्खियाँ हो तो भी कुछ हो सके-कुछ किया जाये . डॉक्टर कहे कि भई कोई मख्खी नहीं है, सोनोग्राफी में भी नहीं आती, फुल बॉडी स्कैन में भी नहीं दिखाई देती. पर वह कहे कि तुम्हारी सोनोग्राफी या स्कैन को मानूं या अपने तजुर्बे को ? कहता है-मैं भनभनाहट सुनता हूँ, टकराहट सुनता हूँ, हड्डियों में चलती है, सरकती है. तुम्हारे स्कैनिंग में ना आये, तुम्हारी कोई भूल है. तुम्हारे सोनोग्राफी/स्कैन में ना आने से मेरी तकलीफ तो बंद नहीं होती. यह भी ठीक बात है कि मेरी तकलीफ तो जारी है.
मैंने सोचा आज इम्प्रेस करने का मौका है.....कहा मैंने, "कुछ उपाय करतें हैं." उसको कहा कि तू आंख बंद कर के लेट जा और जब तक मैं ना कहूँ तू आँख मत खोलना. तेरी मख्खियों को निकालने की कोशिश करतें हैं. उसको अच्छा लगा जब मैंने कहा कि मख्खियों को निकालने कि कोशिश करतें हैं, क्योंकि कम से कम, मख्खियाँ है, इसे एक पढ़े लिखे आदमी ने तो माना. उसने तुंरत मेरे पैर छुए---उसने कहा-सिर्फ आप ही एक समझदार इन्सान मिले. ना मालूम कितने लोगों के पास गया, वे पहले तो यही कहतें हैं कि कैसी मख्खियाँ-----हंसने लगते हैं. हम मरे जा रहे हैं मख्खियों कि भनभनाहट से और तुम्हारी मजाक ! और तुम हँसे जा रहे हो ! डॉक्टर और हँसे तो दुःख होता है. आपने ठीक किया, आप जरूर ठीक कर पाएंगे मुझे.
मैंने कहा, इसमें कोई अड़चन नहीं. मख्खियाँ मुझे दिखाई पड़ रही है, मैं उनकी भनभनाहट भी सुन रहा हूँ....कैसे स्कैनिंग में नहीं आती है यह अचम्भे कि बात है. वह बेफिक्र हो गया. मैंने कहा, तू......आँखों पर उसकी पट्टी बांध कर उसे लिटा दिया. तब मैं भागा और घर में बमुश्किल मख्खी पकड़ पाया, क्योंकि वे मख्खियाँ.....उसको मख्खियाँ दिखाना जरूरी है. एक बोतल में किसी तरह दो मख्खियाँ, बड़ी मुश्किल से.......क्योंकि मैंने मख्खियाँ कभी पकडी नहीं थी...कोई अनुभव नहीं था. उसने आँखें खोली, मख्खियाँ गौर से देखी. बोतल में बंद है ! मैंने कहा कि भई, देख, निकाल दी ना आखिर हम ने तुम्हारी मख्खियाँ.
उसने कहा कि हुज़ूर मैं तो जानता ही था कि सही जगह आ गया हूँ....अब भनभनाहट भी बंद हो गयी है..मैं आराम से हूँ. और एक अरसे बाद वह चैन की नींद सोया....मख्खियों से...भनभनाहट से निजात जो मिल गयी थी.
जब जागा तो उसने बताया था- "मेरा नाम मुल्ला नसरुद्दीन है."
मैं नया नया प्रोफ़ेसर लगा था हैदराबाद में. हमारे किसी अज़ीज़ रिश्तेदार के सौजन्य से मुझे रहने की जगह मिल गयी चारमीनार इलाके में-----एक दम हैदराबादी तहजीब का इलाका....आपस में मेल-जोल भी बहोत. कुछ दिनों में मैंने अपने इल्म के झंडे चारमीनार पर गाड़ दिए. मेरा अंदाज़ और एक्टिंग इतनी कुदरती थी की सब लोग मुझे बहुत ही मदद करने वाला और जहीन इन्सान समझने लगे थे . मेरे लिए भी नयी तहजीब में अच्छा खासा टाइम पास का जरिया था लोगों से मिक्स हो जाना और आप तो जानते ही हैं कि मेरी फ़ित्रत भी कुछ ऐसी ही है. खैर....
हाँ तो सन्डे का दिन था, मैं देर से उठा और बिना नहाये, पूजा किये अख़बार चाट रहा था और चाय की चुस्कियां लेते लेते कई कप खाली कर चुका था. आलस था कि स्किन डिजीज कि तरह मेरा साथ ही नहीं छोड़ रहा था......कहा भी जाता है ना स्किन डिजीज के मुआमले में-- ना तो रोग मरता है ना ही रोगी. (फिर भटक गया मैं यारों) .... हाँ तो पडोसी एक पागल को मेरे पास ले आये. उसमें कुछ खास मुआमला नहीं था. जवान आदमी,एकदम चुस्त और तंदुरुस्त. बस उसको एक बहम सा हो गया था कि दो मख्खियाँ उसके भीतर घुस गयी है. रात सो रहा था, नाक से दो मख्खियाँ अन्दर चली गयी. अब ये दोनों अन्दर भिन्न- भिनाती है. अब वह बैचैन है- ना सो सकता, ना खा सकता-सब अस्त-व्यस्त हो गया है. इलाज करवा डाले सब. अब मख्खियाँ हो तो भी कुछ हो सके-कुछ किया जाये . डॉक्टर कहे कि भई कोई मख्खी नहीं है, सोनोग्राफी में भी नहीं आती, फुल बॉडी स्कैन में भी नहीं दिखाई देती. पर वह कहे कि तुम्हारी सोनोग्राफी या स्कैन को मानूं या अपने तजुर्बे को ? कहता है-मैं भनभनाहट सुनता हूँ, टकराहट सुनता हूँ, हड्डियों में चलती है, सरकती है. तुम्हारे स्कैनिंग में ना आये, तुम्हारी कोई भूल है. तुम्हारे सोनोग्राफी/स्कैन में ना आने से मेरी तकलीफ तो बंद नहीं होती. यह भी ठीक बात है कि मेरी तकलीफ तो जारी है.
मैंने सोचा आज इम्प्रेस करने का मौका है.....कहा मैंने, "कुछ उपाय करतें हैं." उसको कहा कि तू आंख बंद कर के लेट जा और जब तक मैं ना कहूँ तू आँख मत खोलना. तेरी मख्खियों को निकालने की कोशिश करतें हैं. उसको अच्छा लगा जब मैंने कहा कि मख्खियों को निकालने कि कोशिश करतें हैं, क्योंकि कम से कम, मख्खियाँ है, इसे एक पढ़े लिखे आदमी ने तो माना. उसने तुंरत मेरे पैर छुए---उसने कहा-सिर्फ आप ही एक समझदार इन्सान मिले. ना मालूम कितने लोगों के पास गया, वे पहले तो यही कहतें हैं कि कैसी मख्खियाँ-----हंसने लगते हैं. हम मरे जा रहे हैं मख्खियों कि भनभनाहट से और तुम्हारी मजाक ! और तुम हँसे जा रहे हो ! डॉक्टर और हँसे तो दुःख होता है. आपने ठीक किया, आप जरूर ठीक कर पाएंगे मुझे.
मैंने कहा, इसमें कोई अड़चन नहीं. मख्खियाँ मुझे दिखाई पड़ रही है, मैं उनकी भनभनाहट भी सुन रहा हूँ....कैसे स्कैनिंग में नहीं आती है यह अचम्भे कि बात है. वह बेफिक्र हो गया. मैंने कहा, तू......आँखों पर उसकी पट्टी बांध कर उसे लिटा दिया. तब मैं भागा और घर में बमुश्किल मख्खी पकड़ पाया, क्योंकि वे मख्खियाँ.....उसको मख्खियाँ दिखाना जरूरी है. एक बोतल में किसी तरह दो मख्खियाँ, बड़ी मुश्किल से.......क्योंकि मैंने मख्खियाँ कभी पकडी नहीं थी...कोई अनुभव नहीं था. उसने आँखें खोली, मख्खियाँ गौर से देखी. बोतल में बंद है ! मैंने कहा कि भई, देख, निकाल दी ना आखिर हम ने तुम्हारी मख्खियाँ.
उसने कहा कि हुज़ूर मैं तो जानता ही था कि सही जगह आ गया हूँ....अब भनभनाहट भी बंद हो गयी है..मैं आराम से हूँ. और एक अरसे बाद वह चैन की नींद सोया....मख्खियों से...भनभनाहट से निजात जो मिल गयी थी.
जब जागा तो उसने बताया था- "मेरा नाम मुल्ला नसरुद्दीन है."
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