Friday, August 28, 2009

मान्यताएं : जिज्ञासा.......

एक अरसे से
चलते चलते
मान्यताएं
क्यों
लगने लगी है
सच सी............?

सुविधाएँ हैं
मान्यताएं
बस साधन हैं वे
क्यों
जकडे रहतें हैं हम
उनसे फिर भी..............?

गगन है
निराकार
क्यों
गाड़े बैठे हैं हम
खंभे
दश दिशाओं के............?

सूरज
हर पल है
दैदीप्यमान,
क्यों
बंधे हैं हम
उसके उदय से
उसके अस्त से ...........?

नहीं है अस्तित्व
भूत एवम भविष्य का
शाश्वत है
केवल वर्तमान
क्यों
पोसतें हैं हम
भ्रम अपना
घटनाओं के सहारे.............?

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