Friday, August 28, 2009

राधा.......

राधा एक हकीकत थी या कल्पना....एक वास्तविकता थी अथवा विचार इस पर बहुत चर्चाएँ हुई है, जिन्हें मैं बुद्धि विलास का दर्जा देता हूँ. हमारे पास राधा के बारे में जो कुछ कहा गया, लिखा गया, समझा गया उसका विशाल आकार शब्दों के रूप में उपलब्ध हैं, जो प्रेम और भक्ति का एक विस्तृत एवम गहरा समंदर है....उसमें गोता लगाने से हमें प्रेम और अध्यात्म के अनुपम मोती हासिल हो सकते हैं.....बस हमें होना होगा, राधाकृष्ण मय. मैं यहाँ कतिपय वाक्य हम सब के ध्यान के लिए प्रस्तुत करना चाहता हूँ, आशा है आप भी कुछ पोस्ट्स राधारानी के विषय में यहाँ शेयर करेंगे.

१) "राधे तू बड़ भागिनी, कौन तपस्या कीन्ह, तीन लोक के नाथ जी अपने बस कर लीन्ह." राधा कृष्ण तत्वतः एक ही ज्योति है.
२) "बिन राधे कृष्ण आधे." श्री कृष्ण सालिग्राम है, तो चन्दन का तिलक श्री राधाजी है. जगत के आनन्ददाता श्री कृष्ण की वे आनन्ददायिनी शक्ति है. राधा श्री कृष्ण कि आह्लादिनी शक्ति है.
३) 'तुलसी' को भी राधा का स्वरुप माना गया है. कोई भी पवित्र जीवात्मा या वस्तु, चाहे वह वनस्पति ही क्यों ना हो, राधा का ही स्वरुप मानी जाती है. कृष्ण तुलसी कि माला वक्षस्थल पर धारण करतें हैं.
४) "आदि-माया" राधा का ही स्वरुप है. वह कृष्ण में मोह उत्पन्न करती है. माया का काम ही मोह उत्पन्न करना है. चूँकि राधा कृष्ण में मोह उत्पन्न करती है, इसीलिए सात्विक है, वन्दनीय है.
५) जैसा कि ऊपर कहा गया, राधा आह्लादिनी शक्ति है. यदि चित्त वृतियों में अनायास ही आह्लाद आ जाये, अर्थात उमंग या उल्लास आ जाये, या फिर सात्विक आनन्द का अनुभव हो, या कोई शुद्ध विचार या प्रेरणा अंतर से उठे तो ऐसी उर्जा को हम राधा का स्वरुप कह सकते हैं.
६) राधा कोई स्त्री विशेष नहीं, कोई भी जीवात्मा अपना सर्वस्व अर्पण कर, पूर्ण आत्मसमर्पण द्वारा 'आराधिका' या 'राधिका' या फिर 'आराधना' या 'राधा' कि उपाधि प्राप्त कर सकती है.
७) कृष्ण से पहले राधा का नाम आता है जैसे 'राधाकृष्ण' कहा जाता है 'कृष्णराधा' नहीं, कारण कि पहले आराधना में सिद्धि प्राप्त होगी तभी कृष्ण मिलेंगे.
८) राधाकृष्ण प्रेम है। प्रेम का प्रतीक है। भक्ति-गोपी है. पूरा संसार रास स्थली. वास्तव में जीवन का स्पंदन ही रास है. रास से अभिप्राय है हमारे स्वयं के इश्वर-स्वरुप का अनुभव, प्रभु का सानिध्य, उससे अद्वैत, एकीकरण, उससे मिलन और उसमें समा जाna.

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