Monday, August 3, 2009

मुल्ला ने खुशियाँ फैलाई........

मुल्ला नसरुद्दीन को मैं कहता था, "अमां कभी तो कुछ अच्छे काम किया करो, खुदा के पास जाना है."
मुल्ला पूछता, "मास्टर अच्छे कामों की क्या परिभाषा ?"
मैं कहता, "कुछ ऐसा करो जिससे प्रसन्नता का फैलाव हो......जब दूसरों को तुम खुश करोगे, तुम भी खुश हो सकोगे, और उस ख़ुशी की महक चारों तरफ फ़ैल जायेगी."
आप जानते ही हैं मुल्ला के सारे फंडा अनूठे होते हैं, quite different.........
मुल्ला एक दोपहर मेरे पास आया. उसने कहा की आज तीन अच्छे काम किये हैं.
मेरे कानों में घंटियाँ बजने लगी, जासूसी उपन्यासों के मेजर बलवंत की तरह मेरे होंठ गोल हो गए सीटी बजाने के लिए...होने लगे कुछ होने के एहसास. कहा मैंने, " कौनसे अच्छे काम किये, भाई मुल्ला, हम भी तो जानें."
मुल्ला लगा कहने, "पहिला अच्छा काम तो यह किया की एक भिखमंगे को सौ रुपये की खैरात की."
मैं बोला, "सौ रुपये..ये ...ये...ये....?"
मुल्ला बोला, "यही तो कहने जैसी बात है. पूरा सौ रूपया दिया प्रोफ़ेसर मैंने उस फकीर को, क्या सोच सकते हो तुम ?"
मैंने फिर पूछा, "दूसरा अच्छा काम क्या किया ?"

मुल्ला ने जवाब दिया, " दूसरा अच्छा काम यह हुआ की मैं बहुत दिनों से नकली १००० रुपये का नोट लिए फिरता था....किसी ने मुझे उल्लू बना दिया था....तुम्हे तो मालूम ही है मैं बहुत दुखी था इसकी वज़ह से.....हाँ, वह हज़ार का नोट मैंने उस भिखमंगे को दिया और कहा सौ तुम रख लो और मुझे नौ सौ लौटा दो. उसने ऐसा ही किया....क्योंकि मेरे जैसे दयालु कभी कभी तो आतें है उनके पास."
मैं खुंदक खा रहा था मगर पूछ बैठा, " तीसरा अच्छा काम क्या किया ?"
नसरुद्दीन ने टपक से जवाब दिया, " अमां यार इतना भी नहीं समझ सके, तीसरा अच्छा काम यह कि
वह भी खुश....मैं भी खुश. उसको सौ रुपये मिले और मेरा हज़ार का नकली नोट चला.....मुझे नौ सौ मिले......उसको सौ मिले.....दोनों को मिला....दोनों का मान-चित्त प्रसन्न....सब भावना कि ही तो बातें हैं.....तुम शायर लोग यही तो लिखते हो....मान प्रसन्न हो गया.....ख़ुशी में डूब गया.....बस ऐसा ही कुछ उसके साथ और मेरे साथ हो गया....हम दोनों ने एक दूसरे का साथ निभा दिया, यूँ ही निभाते रहेंगे........यही तो चाहते थे ना तुम."

"चल एक काम कर इस ख़ुशी में हो जाये दोपहर रंगीन, कल्लू मियां के कवाब मैं लाया हूँ, चल फ्रीज़र से ठंडी बियर निकाल, इस गरमी में तुम भी प्रसन्न...हम भी प्रसन्न....क्यों ना चौथा अच्छा काम कर लिया जाय." mulla aek achiever ke muafik bola......aur main khushiyan failane men mulla ka sath de raha tha.






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