..
सोच रहा था
क्या अंतर है
वांछित और
मनोवांछित में.....
सुबह किसी का अलाप
आरती के रूप में
सुना था
मनवांछित फल पावे
कष्ट मिटे तन का........
जिज्ञासा हुई
फल मिल रहा है
वांछित मन का
दूर हो रहे हैं
कष्ट तन के
शायद मन की
हर वांछा
तन पर केन्द्रित हो......
इतना उदारमना तो नहीं
राही मनुआ
जो सोचे अपने अलावा
किसी और का
शायद यही नीयति होती है
मनवांछित की...........
सोचा था पूछूँगा मन से :
भाई साहब
आप अपने लिए कुछ
नहीं मांगते क्या
बोल उठा था मन :
मैं तो
चपल
अस्थिर
स्वार्थी
किन्तु मूढ़,
नहीं जानता
समझता
हित अपना
चाहने लगता हूँ
पूरा हो मेरा
हर सपना.......
लगा था पूछने मन तरंगी :
तुम तो हो मासटर
बताओ ना
क्या है वांछित
क्या मनोवांछित ?
समझ गया
मनुआ है
बहुत चतुर चालाक
कभी ना होते इसके
इरादे पाक
समझ मुझको विक्रम
खुद को बेताल
उलझा रहा है मुझे
सवालों में
जाना है इसे दूर
लटकने झूलने को......
मैंने किया था तय
रहूँगा मैं मौन
धरूँगा मैं ध्यान
करूंगा दूर
मेरा अज्ञान
करता रहूँगा
वांछित
ना कि मनोवांछित.......
सोच रहा था
क्या अंतर है
वांछित और
मनोवांछित में.....
सुबह किसी का अलाप
आरती के रूप में
सुना था
मनवांछित फल पावे
कष्ट मिटे तन का........
जिज्ञासा हुई
फल मिल रहा है
वांछित मन का
दूर हो रहे हैं
कष्ट तन के
शायद मन की
हर वांछा
तन पर केन्द्रित हो......
इतना उदारमना तो नहीं
राही मनुआ
जो सोचे अपने अलावा
किसी और का
शायद यही नीयति होती है
मनवांछित की...........
सोचा था पूछूँगा मन से :
भाई साहब
आप अपने लिए कुछ
नहीं मांगते क्या
बोल उठा था मन :
मैं तो
चपल
अस्थिर
स्वार्थी
किन्तु मूढ़,
नहीं जानता
समझता
हित अपना
चाहने लगता हूँ
पूरा हो मेरा
हर सपना.......
लगा था पूछने मन तरंगी :
तुम तो हो मासटर
बताओ ना
क्या है वांछित
क्या मनोवांछित ?
समझ गया
मनुआ है
बहुत चतुर चालाक
कभी ना होते इसके
इरादे पाक
समझ मुझको विक्रम
खुद को बेताल
उलझा रहा है मुझे
सवालों में
जाना है इसे दूर
लटकने झूलने को......
मैंने किया था तय
रहूँगा मैं मौन
धरूँगा मैं ध्यान
करूंगा दूर
मेरा अज्ञान
करता रहूँगा
वांछित
ना कि मनोवांछित.......
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