Friday, October 30, 2009

गरीबनवाज़ की खिदमत में .....

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मेरा ख्वाजा मेरा राजा
धड़कता तू यह सीना है
ज़िन्दगी की अंगूठी में
जड़ा तू इक नगीना है.......

मंगता हो या महराजा
सभी का वो ही दाता है
जो उसके दर पे आता है
करम उसके पा जाता है
रूह का नूर है ख्वाजा
जीने का करीना है
ज़िन्दगी की अंगूठी में
जड़ा वो इक नगीना है.

दया का सागर है ख्वाजा
इमरत का गागर है ख्वाजा
अगर पीना तुझे बन्दे
पनाह उसकी में तू आजा
पतवार दे दे तू उसको
पार होना सफीना है
ज़िन्दगी की अंगूठी में
जड़ा वो इक नगीना है.

रोशनी है वो सूरज की
बादलों का वो पानी है
चांदनी चाँद की है वो
मौजों की रवानी है
हर-इक गुलाब में बसता
ख्वाजा का पसीना है
ज़िन्दगी की अंगूठी में
जड़ा वो इक नगीना है.

धन दौलत ना मैं मांगू
ऐशोआराम ना चाहूँ
तमन्ना है के बस इतनी
सुकूने-ए-ज़िन्दगी पाऊं
तू मेरी ही काशी है
तू ही मेरा मदीना है
ज़िन्दगी की अंगूठी में
जड़ा तू इक नगीना है.

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