Friday, October 9, 2009

शून्य ( O )...........(आशु कविता)

चेतना
हो जाती
अन्तर्वस्तु विहीन
रह जाता है
मात्र चैतन्य...........

दर्पण होता है
जब मुक्त
प्रतिबिम्बों से
रह जाता है
केवल दर्पण.........

होते हैं
भरे हुए हम
अवस्था कहलाती है
मन..............

होते हैं
हम शून्य
घटित होता है
ध्यान...............

अवस्था जिसमें :
वस्तु नहीं
विचार नहीं
चित्त नहीं
मन नहीं
होता है शून्य
बस शून्य...........

यही है निर्वाण
यही है मोक्ष
यही है केवल्य.........

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