Thursday, October 15, 2009

मुस्कराईये ! (आशु रचना)

होता नहीं गवारा..... टुक मुस्कुराईये
आइना खफा खफा है टुक मुस्कुराईये !

उदासियाँ बसा कर क्यूँ सो गए हैं आप
सूरज चढा है सर पर अब जाग जाइये !

नहीं है कोई आखिर दौर-ए-ज़िन्दगी में
हर मोड़ पे ख़ुशी के नगमों को गाईये !

चल पडो अकेले पर्वाह है क्यों औरों की
मंजिल आपकी है खुद राहें बनाईये !

चाहत में गैरों की खुद को भुला दिया
मौका है खुद से आज मोहब्बत जताइये !

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