Sunday, October 25, 2009

पति परमेश्वर (आशु प्रस्तुति)

...

सुना था
कर परिष्कार स्वयम का
बन सकते हैं हम भी ईश्वर
माना जाता है यह भी कि
लेते हैं अवतार जगदीश्वर
पूजे जाते हैं क्यों
ये बुत घर घर
ना जाने मुफ्त में
ये पति
बन गए कैसे परमेश्वर ?

अक्ल नहीं
शक्ल नहीं
गुण नहीं
कुव्वत नहीं
चलतें हैं मगर ऐंठ कर
मां के लाल बने
यह निशाचर भी तो
सोया करते हैं बैठ कर
ना जाने क्यों फिर भी
समझते है स्वयम को सर्वेश्वर
ना जाने मुफ्त में
ये पति
बन गए कैसे परमेश्वर ?

कष्ट अपने
होतें है अति महान इनको
दुःख भार्या के लगते हैं
नन्हे नन्हे से इनको
इनके दर्पण में
एक छवि है पूर्वांकित
देखा करतें हैं उसे
नयन इनके
होकर आह्लादित
समझा करते हैं
खाविंद हुज़ूर खुदको
बादशाह-ए-किश्वर
ना जाने मुफ्त में
ये पति
बन गए कैसे परमेश्वर ?

पांच परमेश्वरों ने
दाँव पे लगा दिया था उसको
एक महऋषि ने
पत्थर बना दिया था उसको
अफवाहों से हो के मजबूर
ले डाली थी
अग्निपरीक्षा उसकी
देशनिकाला दिया था हामला को
ना सोची थी हालत उसकी
आज भी समझते हैं
बाटा कि हवाई से सस्ती उसको
बीवी है बस इक गुलाम
मानते हैं जरिया-ए-मस्ती उसको
करिए स्वागत फिर भी मुस्कुरा के
आये हैं तेरे दर पर
ये 'सेल्फ-स्टाईलड'
मैले कुचेले 'प्रियवर'
ना जाने मुफ्त में
ये पति
बन गए कैसे परमेश्वर ?

(किश्वर=देश/country हामला= गर्भवती/प्रेग्नेंट कुव्वत=शक्ति/पॉवर.)

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