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Baaten Vinesh Ki
Monday, October 26, 2009
जुगलबंदी ( छोटी कविता)
...
लरज़ते होंठ
बुला रहे हैं मुझे......
मौन की
महफिल में
पेश होनी है
जुगलबंदी हमारी.....
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