Tuesday, October 6, 2009

अभिसार (जैसा महक ने पढा)

मिलन की
वांछा लेकर
सोया तो था.........

तेरी छवि को
नयनों में
बसाया तो था..........

स्पर्श तुम्हारे ने
मुझ में
स्पंदन कोई
जगाया तो था..........

तेरे मधुर गीतों ने
मुझे दीवाना
बनाया तो था............

मेरे उपवन में
पुष्प तुम सा
प्रकृति ने
खिलाया तो था.........

तपिश से व्याकुल
तन मन को
सहलाने
पवन ने
ठंडा झोंका कोई
बहाया तों था.........

स्वप्न में
आया था मैं
साथ मिला था
हर पल का
साँसों के दौर में
कठिन था
पहचानना
तुझ को
मुझ को
अभिसार के
अभिप्राय से
मुझ को तुम ने
बुलाया तो था.........

No comments:

Post a Comment