...
ललचाया था
खारा जल
सागर का
पाने सूरज का सोना,
धरा था वेश उसने
बादल का
चढ़ चला था
आकाश...........
पवन ने खायी थी
चुगली उसकी
बना कौडा तड़ित का
भास्कर ने
मारी थी 'मार'
उस लोभी को
बह निकले थे
अविरल
अश्रु......
भय से हो आक्रांत
उस लाचार ने
चुप चाप निकाल
किया था सुपुर्द
चुराया हुआ
हार इन्द्रधनुषी.......
शरमाया था इतना
नौसखिया
मासूम सा चोर
मेघ था उसका नाम
मिट गया था
बरस गया था
बेचारा
गल गल
बह गया था
संग नदी के
कल कल
पहुँच गया था
अपने घर
फिर वह जल........
ललचाया था
खारा जल
सागर का
पाने सूरज का सोना,
धरा था वेश उसने
बादल का
चढ़ चला था
आकाश...........
पवन ने खायी थी
चुगली उसकी
बना कौडा तड़ित का
भास्कर ने
मारी थी 'मार'
उस लोभी को
बह निकले थे
अविरल
अश्रु......
भय से हो आक्रांत
उस लाचार ने
चुप चाप निकाल
किया था सुपुर्द
चुराया हुआ
हार इन्द्रधनुषी.......
शरमाया था इतना
नौसखिया
मासूम सा चोर
मेघ था उसका नाम
मिट गया था
बरस गया था
बेचारा
गल गल
बह गया था
संग नदी के
कल कल
पहुँच गया था
अपने घर
फिर वह जल........
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