...
तन्हाई भी आज अपना
मुझे हाथ नहीं देती
वक़्त ने बदला है रुख ऐसा
परछाईं भी साथ नहीं देती......
सुने है खूब किस्से
कुदरत की दिलदारी के
वोह भी रूठी है हम से
कोई सौगात नहीं देती......
हारना चाहता हूँ
मुद्दत से उस से
शह तो दिए जाती है
मगर मात नहीं देती........
चाहत में उसकी
लिखे थे अनगिनत नगमे
अल्फाज़ तो देती है ये कलम
ज़ज्बात नहीं देती.....
रूह और जिस्म के सौदे
नहीं होते इस तरहा
रस्में दे देती है छत तो
कायनात नहीं देती.......
घुट घुट के जीओं तो
नवाजेगी यह दुनिया
तपता सा दिन देती है
पुरसुकूं रात नहीं देती.....
तन्हाई भी आज अपना
मुझे हाथ नहीं देती
वक़्त ने बदला है रुख ऐसा
परछाईं भी साथ नहीं देती......
सुने है खूब किस्से
कुदरत की दिलदारी के
वोह भी रूठी है हम से
कोई सौगात नहीं देती......
हारना चाहता हूँ
मुद्दत से उस से
शह तो दिए जाती है
मगर मात नहीं देती........
चाहत में उसकी
लिखे थे अनगिनत नगमे
अल्फाज़ तो देती है ये कलम
ज़ज्बात नहीं देती.....
रूह और जिस्म के सौदे
नहीं होते इस तरहा
रस्में दे देती है छत तो
कायनात नहीं देती.......
घुट घुट के जीओं तो
नवाजेगी यह दुनिया
तपता सा दिन देती है
पुरसुकूं रात नहीं देती.....
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