उसके ख़त का मजमून कुछ ऐसा था :
उसका ख़त (बात दीवानी की)
# # #
एक अरसा बीत गया
इस इंतज़ार में कि
एक दिन तुम आओगे
आओगे
और
मेरी आँखों में
भरे बरसों के
आंसुओं को
पी लोगे.....
एक अरसा
बीत गया है
इस इंतज़ार में कि
समुद्र सा ज्वर
कभी तो
बनेगा बर्फ
और तुम
अनुभव करोगे
शीतलता को.....
क्या होता
यदि ह्रदय के किसी
एक कोने में
पड़ी रहती मैं
और
तुम कहते कि
मैं साथ हूँ
तुम्हारे....
एक अरसा बीत गया
इस इंतज़ार में कि
एक दिन तुम आओगे
आओगे
और
मेरी आँखों में
भरे बरसों के
आंसुओं को
पी लोगे.....
एक अरसा
बीत गया है
इस इंतज़ार में कि
समुद्र सा ज्वर
कभी तो
बनेगा बर्फ
और तुम
अनुभव करोगे
शीतलता को.....
क्या होता
यदि ह्रदय के किसी
एक कोने में
पड़ी रहती मैं
और
तुम कहते कि
मैं साथ हूँ
तुम्हारे....
मेरा जवाब (बात विनेश की)
मैंने उसके ख़त को बार बार पढ़ा और जवाब भी लिखा, मगर उसे भेज ना सका, आप से शेयर करना चाह रहा हूँ......
# # #
तुम्हारा ख़त
मिला,
प्रिये !
प्यास मेरी
बढ़ गई है
पाके खुशबू
तेरे अश्कों की,
इरादा है
डूब जाने का,
तेरी झील स़ी
आँखों में
समा कर......
पलकों को
ना झुकाना
नज़रों में
डाल कर
नज़रें
कह डालना
जो भी है
शिकवे
तुम्हारे....
आंसू ना
बहा देना
कहीं मैं
प्यासा
तपता
बाहर ही ना
मर जाऊँ.....
मेरे सागर का
ज्वार
बन गया था
भाटा
जब लगने लगा था
मुझ को कि
तुम बिन है सब
सूना सूना सा...
तेरे मौन और
मेरे अहम् ने
दे डाली थी
यह जुदाई...
प्रिये !
गरजो
बरसो
झगड़ो
पिघलाने
बर्फ को
मुझे दरकार है
गर्मी की
ना कि
शीतलता की....
दिल के
हर जर्रे में
समायी है तू
सिर्फ तू....
इज़हार
ना कर सका कि
तुम हो साथ मेरे
हर घड़ी
हर पल
जागते भी
ख्वाब में भी....
(और जैसा कि मैंने कहा, यह अधूरा सा ख़त मैं उसे नहीं भेज सका और वह भी इंतज़ार ना कर सकी........बाकी हाले-दिल फिर कभी.)
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तुम्हारा ख़त
मिला,
प्रिये !
प्यास मेरी
बढ़ गई है
पाके खुशबू
तेरे अश्कों की,
इरादा है
डूब जाने का,
तेरी झील स़ी
आँखों में
समा कर......
पलकों को
ना झुकाना
नज़रों में
डाल कर
नज़रें
कह डालना
जो भी है
शिकवे
तुम्हारे....
आंसू ना
बहा देना
कहीं मैं
प्यासा
तपता
बाहर ही ना
मर जाऊँ.....
मेरे सागर का
ज्वार
बन गया था
भाटा
जब लगने लगा था
मुझ को कि
तुम बिन है सब
सूना सूना सा...
तेरे मौन और
मेरे अहम् ने
दे डाली थी
यह जुदाई...
प्रिये !
गरजो
बरसो
झगड़ो
पिघलाने
बर्फ को
मुझे दरकार है
गर्मी की
ना कि
शीतलता की....
दिल के
हर जर्रे में
समायी है तू
सिर्फ तू....
इज़हार
ना कर सका कि
तुम हो साथ मेरे
हर घड़ी
हर पल
जागते भी
ख्वाब में भी....
(और जैसा कि मैंने कहा, यह अधूरा सा ख़त मैं उसे नहीं भेज सका और वह भी इंतज़ार ना कर सकी........बाकी हाले-दिल फिर कभी.)
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