Saturday, July 31, 2010

अनगढ़ सत्य

######

उस दिन सुबह

अचानक

वो नीलकंठ

न जाने

खो गई थी

किन सपनों में

किस मादक गंध ने

किया था मुग्ध उसको

किसकी याद सताई थी उसे ;

उड़ गई थी शाख से

उड़ती रही-उड़ती रही

कभी नीचे

कभी ऊपर

आसमान के करीब

बादलों के पार

भूल गई थी वह

घोंसले में बैठे

नन्हे शिशु नीलकंठो को

छुट गए थे वे

कोमल मासूम बच्चे

जो दिल के टुकड़े थे उसके,

कुदरत की बुलाहट

वुजूद के एहसास

होतें हैं

सब रिश्तों से परे

उस पल

वह माँ नहीं

बस एक मादा थी

बस एक मादा थी……….

(नर-मादा दोनों के लिए यह एक प्राकृतिक अनगढ़ सत्य है---a raw truth , जिसे अध्यात्म और व्यवस्था ने परिमार्जित करने का प्रयास किया;……सफल या असफल, कहना मुश्किल है.)

No comments:

Post a Comment