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कितने चित्र
बना लिए
कल्पना के रंगों से
कितनी ऋतुएं
समेट ली मैने
तुम्हारी आतुर
पुकार की
प्रतीक्षा में......
........................................
मेरा प्रत्यातुर :
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तुम ने
जो भी
मूर्त अमूर्त
चित्र बनाये
वो मेरे ही
चित्र थे,
तुम ने
जो भी
रंग भरे
वो मेरे ही
रंग थे.....
जब जब
तुम ने
यादों में
बुलाया
मैं यहाँ नहीं
वहीँ था.
मेरी सभी ऋतुएं
तुम्हारी
तुलिका को
समर्पित थी....
आ रहा हूँ
अपने रंगों को पाने,
अपनी ऋतुओं को लेने,
प्रतीक्षा
केवल
तुम्हारी ही नहीं
मेरी भी तो है.....
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