यह रचना बसवन्ना कि लिखी है और 'Speaking of Shiv:By A.K. Ramanujan' पुस्तक में उधृत है। यह उसका हिंदी अनुवाद है.
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धनी
बनायेंगे
शिव का मंदिर !
मैं
निर्धन
क्या बनाऊंगा ?
पांव मेरे
स्तम्भ हैं,
काया है भवन
मंदिर का,
सर मेरा है
छाजन.
स्वर्ण का....
सरित संगम के
देव सुनो !
गिर जायेंगे
सारे मंदिर, किन्तु
सदैव रहेगा
तन का मंदिर,
यह शिव का मंदिर....
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धनी
बनायेंगे
शिव का मंदिर !
मैं
निर्धन
क्या बनाऊंगा ?
पांव मेरे
स्तम्भ हैं,
काया है भवन
मंदिर का,
सर मेरा है
छाजन.
स्वर्ण का....
सरित संगम के
देव सुनो !
गिर जायेंगे
सारे मंदिर, किन्तु
सदैव रहेगा
तन का मंदिर,
यह शिव का मंदिर....
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