(स्थानांग सूत्र (जैन परंपरा) में क्रोध के चार प्रकर बताये गए हैं, सहज शब्दों में कह रहा हूँ..)
# # #
अपने ही
निमित
होता
घटित
आत्मप्रतिष्ठित क्रोध..
अन्यों के
निमित
होता
घटित
परप्रतिष्ठित क्रोध..
स्व-पर
निमित द्वय के
होता
घटित
तदुभय प्रतिष्ठित क्रोध..
क्रोध-वेदनीय
कर्मों का होता
जब उदय,
अकारण
अनिमित
होते प्रबल
परमाणु
असह्य,
शांत तिष्ठ
मानव को
करता उत्तेजित
अप्रतिष्ठित क्रोध..
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अपने ही
निमित
होता
घटित
आत्मप्रतिष्ठित क्रोध..
अन्यों के
निमित
होता
घटित
परप्रतिष्ठित क्रोध..
स्व-पर
निमित द्वय के
होता
घटित
तदुभय प्रतिष्ठित क्रोध..
क्रोध-वेदनीय
कर्मों का होता
जब उदय,
अकारण
अनिमित
होते प्रबल
परमाणु
असह्य,
शांत तिष्ठ
मानव को
करता उत्तेजित
अप्रतिष्ठित क्रोध..
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