Wednesday, July 28, 2010

'ना' और 'हाँ'...


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यदि नहीं
सामर्थ्य
तुझ में
'ना'
कहने का,
अर्थ हीन है
'हाँ'
तुम्हारी...
आज्ञाकारिता
और
वफादारी को
जोड़ा है
'हाँ' सिर्फ 'हाँ' से,
अपने ही
सुविधा और
अहम् पोषण
हेतु.........

प्रतिबद्धता है
अभिनय
सीखाया-पढ़ाया सा,
प्रेम है
किन्तु
खिला खिला
जंगली फूल सा,
सहज और
कुदरती...

प्रेम
प्राप्य हुआ हो
याचना से
बन जाता है
प्रतिबद्धता
और
दासत्व,
अर्पित हुआ
स्वेच्छा से जो
प्रेम,
बन जाता है
अनुपम उपहार
जगाने को
चेतना....



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