Tuesday, July 13, 2010

क्रोध : तारतम्यता मात्रा की

(जैनाचार्य सोमप्रभ के ग्रन्थ सिन्दूर प्रकर को पढ़ते कुछ मोती मिले आप से शेयर कर रहा हूँ )

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अमिट
जो होता है
भांति
चट्टान की
दरार के
जो रह सकती है
विद्यमान
सहस्र वर्ष पर्यन्त
होता है वह
तीव्रतम
अनन्तानुबन्धी क्रोध...

भूमि की रेखा
सद्र्श होता है
वह क्रोध
गहन,
मिटाना जिसको
होता है
अति कठिन,
होता है वह
तीव्रतर
अप्रत्याखान क्रोध...

बालू पर बनी
लकीर से
होते हैं
लक्षण जिसके,
हवा के झोंके से
मिट जाते
चिह्न जिसके,
होता है वह
मंद
प्रत्याखान क्रोध...

जल पर बनी
रेखा
मिट जाती
तत्काल,
सब हो जाता
सहज
समय-परिस्थिति-काल,
होता है वह
संज्वलन क्रोध...

(शरीर शास्त्री क्रोध उत्पति के लिए ग्रंथियों के स्राव को उत्तरदायी मानते हैं. एड्रेनल ग्रंथि का स्राव समुचित नहीं होता तो भय चिन्ता और क्रोध की उत्पति होती है. कर्मशास्त्र में क्रोध की मात्र के तारतम्य पर भी गहनता से विश्लेषण हुआ है..उप्रयुक्त रचना जैन परंपरा में क्रोध के वैज्ञानिक अध्ययन की findings पर आधारित है....यह आपकी सोचों के लिए अच्छी खुराक हो सकती है.)

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