अतीत से दूर भागना, छोड़ना, भूलना यह सब प्रयास हमें और ज्यादा अतीत से जोड़ते हैं...क्यों ना हम अतीत को 'विटनेस' बन कर देखें और वर्तमान की हकीक़तों को जीयें। मगर उसको यह बात कभी पसंद नहीं आती थी, अतीत का मोह उसे हमेशा बोझिल बनाये रखता था. पेश है उसकी एक रचना:
दीवानी उवाच
# # #
भूत
और
वर्तमान के बीच
एक सेतु
बड़ी आशा
और
प्रयासों से
बनाया हुआ...
एक एक तार
जोड़ कर !
कितना
पीछे छूट गया है
सब कुछ
रेलगाड़ी में
जाते समय
छूटते हुए
स्टेशन की तरह
छूट रहा है
एक एक कर
अतीत के
गर्भ में...
ना जाने
कितने आकार
सामने
आने लगते हैं
और
इतिहास के
बोझ तले
दबे रहते हैं....
अतीत की श्रंखला
होती ही है ना
कुछ ऐसी....
भूत
और
वर्तमान के बीच
एक सेतु
बड़ी आशा
और
प्रयासों से
बनाया हुआ...
एक एक तार
जोड़ कर !
कितना
पीछे छूट गया है
सब कुछ
रेलगाड़ी में
जाते समय
छूटते हुए
स्टेशन की तरह
छूट रहा है
एक एक कर
अतीत के
गर्भ में...
ना जाने
कितने आकार
सामने
आने लगते हैं
और
इतिहास के
बोझ तले
दबे रहते हैं....
अतीत की श्रंखला
होती ही है ना
कुछ ऐसी....
वर्तमान: 'हियर एंड नाऊ' (विनेश उवाच)
कितनी बार उस-से चर्चा हुई थी, बात उसको जमती थी मगर...........
अच्छा मैं कुछ ऐसा सोचता और कहता था:
# # #
नहीं जानता
अस्तित्व
किसी
भूत को
किसी
भविष्य को,
इसे बस
ज्ञात है
केवल मात्र
वर्तमान.....
जो कुछ है
बस अभी है
यहाँ है,
समय भी
अंतराल भी,
मैं भी
तुम भी
संसार भी...
मत उलझाओ
स्वयं को
विगत
और
आगत के
गोरखधंधे में....
विगत
तुम्हे धकेलेगा
पीछे
और
खींचेगा
आगत
अपनी ओर......
और
इसी छीना झपटी की
क्रीड़ा में
या
खींच-तान की
प्रक्रिया में
हो जाओगी तुम
भंगित
विखंडित
और
विक्षिप्त....
विगत को कर
आलिंगन
ना पा सकोगी
परमानन्द या
हर्षातिरेक को
(क्योंकि)
विगत का
कोई नहीं है
अपना
अस्तित्व,
वो तो
होता ही नहीं,
उसका होना तो
हो चुका है
विलीन
खेल समापन में....
क्यों
बोझिल होती हो
पाल कर भ्रम
जीने का
विगत
स्मृतियों में
या
समागत की
परिकल्पनाओं में,
एक
बीत चुका है
दूसरा
नहीं है अभी
और
दोनों के
मध्य जो है
विद्यमान
साकार
क्यों
गँवा रही हो उसे
जो है
"HERE & NOW"
वर्तमान,
वर्तमान,
वर्तमान ! ! ! ! !
अच्छा मैं कुछ ऐसा सोचता और कहता था:
# # #
नहीं जानता
अस्तित्व
किसी
भूत को
किसी
भविष्य को,
इसे बस
ज्ञात है
केवल मात्र
वर्तमान.....
जो कुछ है
बस अभी है
यहाँ है,
समय भी
अंतराल भी,
मैं भी
तुम भी
संसार भी...
मत उलझाओ
स्वयं को
विगत
और
आगत के
गोरखधंधे में....
विगत
तुम्हे धकेलेगा
पीछे
और
खींचेगा
आगत
अपनी ओर......
और
इसी छीना झपटी की
क्रीड़ा में
या
खींच-तान की
प्रक्रिया में
हो जाओगी तुम
भंगित
विखंडित
और
विक्षिप्त....
विगत को कर
आलिंगन
ना पा सकोगी
परमानन्द या
हर्षातिरेक को
(क्योंकि)
विगत का
कोई नहीं है
अपना
अस्तित्व,
वो तो
होता ही नहीं,
उसका होना तो
हो चुका है
विलीन
खेल समापन में....
क्यों
बोझिल होती हो
पाल कर भ्रम
जीने का
विगत
स्मृतियों में
या
समागत की
परिकल्पनाओं में,
एक
बीत चुका है
दूसरा
नहीं है अभी
और
दोनों के
मध्य जो है
विद्यमान
साकार
क्यों
गँवा रही हो उसे
जो है
"HERE & NOW"
वर्तमान,
वर्तमान,
वर्तमान ! ! ! ! !
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