Thursday, May 7, 2009

अस्तित्व (दीवानी सीरीज)

अस्तित्व (दीवानी सीरीज)

उस ने एक दिन फिर मुझ से ली किताब लौटायी और उसमें एक खूबसूरत सा सफा मोड कर रखा हुआ था…जिस पर मोती से अक्षरों में एक कविता लिखी थी. किस की कृति थी यह जानना मुश्किल था…..किन्तु बहुत ही सहज और दिलकश थी....कम्यूनिटीज पर पोस्ट होती (उस ज़माने में कंप्यूटर भी नहीं था आम प्रचलन में) तो ‘बहुत सुंदर’ ‘ग्रेट वर्क’ ‘क़त्ल क़त्ल’ आदि की टिप्पणियां मिलती….लेकिन मेरा तो सर चकरा गया, कुछ भी समझ में नहीं आया, हाँ एक मीठा सा एहसास ज़रूर महसूस हो रहा था…. शब्दों और भावों के दूरगामी परिणामों से भी परिचित था….गरम काली कॉफ़ी का प्याला लेकर उस रात अपनी ‘स्टडी ’ में बैठा सोचता रहा……..क्या नतीजा रहा आप से शेयर करूँगा, रूखा सूखा.

पहिले उस सफे की लिखावट को आप से शेयर कर लूँ। आप भी व्यग्र होंगे इस 'intellectual' मोहब्बत में झाँकने को.

तलाशी : हर्फ़ दीवानी के

# # #
प्रिय !
लेकर देखो
अपनी तलाशी
मिलूंगी मैं
तुम्हारी रीझ में
तुम्हारी खीज में
तुम्हारी प्रतीक्षा में
तुम्हारी स्मृतियों में
तुम्हारे आंसुओं में
सिसकियों में
तन में
मन में
प्राणों में……..

मिलूंगी तुम्हे
मैं ही मैं
तुम्हारे चिंतन में
तुम्हारे सृजन में
नींद में
सपनों में
आशाओं में
उमंगों में………..

पाओगे तुम
मेरा ही प्रतिबिम्ब
तुम्हारी शाम में
तुम्हारी सुबह में
प्रार्थनाओं में
उपलाम्भों में
मनुहारों में
तुम्हारे शब्द शब्द में
साथ हूँ तुम्हारे
निमिष निमिष ……………

फिर भी
ना हो तुम्हे विश्वास
मेरे कथन पर
तो पूछ कर स्वयं से
बताओ !
कभी बीता है
एक लव भी ऐसा
रही नहीं जब
संग तुम्हारे मैं……..

है कोई अस्तित्व
तुम से अलग
मेरा
या
मुझ से अलग
तुम्हारा………

झूठ विनेश का

# # #
'ऑब्सेशन ' था उसका. शायद मिल्स एंड बून पढ़े हों, या ओ.पी.नय्यर/मदन मोहन/नौशाद साहब की धुनों से सजे एस. एच.बिहारी/शकील/नीरज आदि के गीतों को सुना हो, या ना जाने किस सोच में डूबी हो....यह बायोलोजी थी या साइकोलोजी...मगर थी बहुत ही दिल को छूनेवाली.

मेरे सोचों का सफ़र थमने का नाम नहीं ले रहा था......मैं ने दिल के दरवाज़े बंद किये और दिमाग को एक्टिवेट किया.....सफे पर जो अल्फाज़ उतारे वे यह थे :

मेरा झूठ..

# # #
सच है
प्रिये !
नहीं है अस्तित्व
तुम बिन मेरा
मुझ बिन तेरा,
बात यह जब
मस्तिष्क से उतर
जा ठहरेगी
ह्रदय में,
आयेगी
एक आवाज़ :
अस्तित्व
ना तेरा है
ना मेरा है
और ना ही
हमारा है,
हम हैं अंश
उस अस्तित्व के
जो अनादि है
अनन्त है,
होगा तब
आभास,
हे प्रिये !
अस्तित्व
हम ही हैं,
अस्तित्व
हम ही हैं !








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