हाँ तो जनाब मालूम है, मुल्ला को उनका गधा मुफ्त में हासिल हुआ था.'मुफ्त' लफ्ज़ ही ऐसा है कि आप पूछेंगे: कैसे ? बेशक उस ज़माने में माल्स नहीं होते थे की अन्धाधुन्ध शौपिंग के कूपन्स से लोटरी में मारुती ८०० की तरह गधा निकल आये, और ना ही कोई ऑटो काम्पनीस की तरहा टेस्ट ड्राईव की चाबी भेज कर मार्केटिंग करना होता था, जिसकी चाबी गाड़ी में लग जाये, वह गाड़ी ले जाये, फयिनेंसर्स का जमाना भी नहीं था की मुल्ला जैसे फक्कड़ किश्तों में व्हेईकल , ना ना, गधा 'acquire' कर 'हनी' को खुश कर सकें....यह तो जनाब मुआमला 'गधे' का था...और वोह भी उस ज़माने के गधे का. हाँ तो सुनिए मुल्ला के गधे 'acquire' करने की दास्तान.
सलाम गधे को या कि.........?
मुल्ला नसीरुद्दीन के गाँव में एक मौलवी साहब थे. उनके पास एक गधा होता था, शायद किसी बन्दे ने सौगात में दे दिया था. मौलवी साहब गधे कि पीठ पर 'स्पेशल' जीन नुमा बुक स्टैंड लगा कर, उस पर कुरान-शरीफ की पाक़ किताब को रख कर, गाँव की फेरी पर निकलते थे, खैरात और सौगात वसूलने.
गधा और मौलवी साहब जिस गली से निकलते, पब्लिक पहले गधे की तरफ मुखातिब हो पाक़ कुरान को और फिर मौलवी साहब को सलाम करते थे, झुक झुक कर. गधा तो गधा, लोगों की कुरान को की गई सलाम को वह अपने लिए समझने लगा. रोजमर्रा जब ऐसे सलाम मिलने लगी तो गधा कुरान-शरीफ की बात बिलकुल भूल गया और मुस्कुरा कर हर सलाम का जवाब भी देने लगा अपनी गर्दन थोड़ी स़ी हिला कर. गधा अपनी इतनी बड़ी इज्ज़त से फूले नहीं समाता था....उसे बहुत गुरूर हो गया.
एक दिन शायद कोई मेले का दिन था, गाँव में भीड़ ज्यादा थी, रंगीं कपड़े पहने सजे धजे लोग-लुगायियाँ चारों तरफ भरे हुए थे. गधे को भी नहला धुला कर मौलवी ने कुछ खास तैयार किया था, कुरान शरीफ जिस पर विराजित होती थी उस मखमली आसन को भी नया लगाया था जो मजार की चद्दर की तरहा गधे को कवर किये था, गधे को खुबसूरत फूल माला भी पहनाई थी, और उसके गले में जो रस्सा था वह भी सुनहरी था. मौलवी इस खास मौके पर नयी सलवार और अचकन पहने हुए थे, तेल लगी दुपल्ली की जगह नयी फुंडे वाली टोपी थी..पांव में नए चमचमाते जूते थे, दाढ़ी पर ताज़ी हिना का रंग और खुशबू महक रहे थे. कुल मिलाकर गधा और मौलवी दोनों की पर्सनैलिटी आज कुछ खास अन्दाज़ लिए थी.
हाँ तो जनाब ! बहुत ही सज धज के गधे और मौलवी की फेरी जोश खरोश से गाँव के गली चौराहों से गुजर रही थी. मौलवी का झोला सिक्कों से और साथ चलने वाले शागिर्दों के ठेले अनाज से भर रहे थे. जो भी मिलता गधे और मौलवी के सौंदर्य से अत्यंत ही प्रभावित होता, फिर पाक़ कुरान के प्रति श्रद्धा के गहरे भाव भी.....सो सलामों में बहुत गरमजोशी थी. मौलवी साहब बहुत खुश बार बार गधे को सहलाते पुचकारते. और गधे का ना पूछिये, बहुत ही खुश जैसे की बड़े अरसे बाद, जिसे प्रपोस किया हो वोह मुस्कुरा कर तीन उंगली (आई लव यू) दिखाती है...या महबूबा का खडूस बाप मर जाता है....या किसी बूढ़े 'शेठ ब्रोस' के 'कायम' चूर्ण के इस्तेमाल के बाद उसके असरदार नतीजे से दो चार होता है, या पोस्ट की गई नज़्म पर ओनर /मोड्स के कमेंट्स मिल जाते हैं. गधा इतराने लगा. सोच रहा था कितना 'रेस्पेक्ट' है हमारा, पब्लिक हमें झुक झुक कर सलाम करती है, मौलवी हमें प्यार से सहलाता है, आस-पड़ोस की गधियां हमें हसरत भरी नज़रों से देखती है, औरतें अपने नाजुक हाथों से हमें गुड़ खिलाती हैं , और तो और हम पाक़ कुरान भी हमारी पीठ पर सवारी करती है. गधा 'विभोर' हो गया, सारा सामान उसके 'दिल को छू गया'. गधे के मूड बहुत ही लाइट हो गया, वह ढेंचू ढेंचू रेंकने लगा, और डांस करने लगा, ब्रेक , सालसा, कत्थक, भरतनाट्यम, बैले, बैली सब तरहा के नृत्य एक साथ. नतीजा रस्सा मौलवी के हाथ से छूट गया, और कुरान की किताब भी नीचे गिर गई. पब्लिक में आक्रोश उमड़ गया, गधे की यह मजाल.....लोग बाग़ लगे गधे को पीटने....गधा कि भागे जा रहा था......मार मार कर गधे को अधमरा कर दिया गया.
मौलवी बोला, " गधा तो गधा ही था, मेरी ही गलती थी जो मैने इसे इस पाक़ काम में लिए इस्तेमाल किया, इस गधे ने यह नहीं सोचा कि लोगों की सलाम और इज्ज़त आफज़ायी तो पाक़ कुरान के लिए थी उसके लिए नहीं, उसके 'कैरियर ' होने के नाते उसके मुखातिब हो लोग बाग़ झुकते थे और सलाम करते थे. अल्लाह मेरे गुनाह मुआफ करे, कुरान शरीफ को मैं अब से अपने 'शानों' पे फेरी करुंगा....इसको सजा देने के लिए मैं इसे मुल्ला नसीरुद्दीन को दे दूंगा...जो इसको ऐसा खटायेगा कि गधे को अपनी औकात मालूम हो जाएगी."
इस तक़रीर के बाद गधे को मुल्ला नसीरुद्दीन के सुपुरद कर दिया गया. मुल्ला गधे के साथ और गधा मुल्ला के साथ 'जैल ' हो गए हैं....क्योंकि-They share so many common characteristics.
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