राशी और रोहित बहुत खुश थे.भगवान का दिया उनके पास सब कुछ था. रोहित का ऑफसेट -प्रिंटिंग प्रेस का कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था. अच्छी आमदनी से उनका जीवन-स्तर एक मध्यम-वर्गीय परिवार के मापदंडों से काफी ऊँचा उठ गया था. शहर के पॉश इलाके में अपना ओनरशिप -फ्लैट था, वेल फर्निश्ड , आधुनिक सुख-सुविधाओं से युक्त. स्कूटर-सवारी से वे लोग ‘फिअट पद्मिनी’ में बैठ फर्राटे भरनेवाले हो गए थे.
विवाह के तीन साल बाद राशी ने रितिका को जन्म दिया था. और उसके ठीक दो साल के बाद राहुल एक और नन्ही ख़ुशी बन उनकी जिन्दगी में आ गया था. बच्चों की किलकारियां और चंचलता उनके जीवन में अनुठा लावण्य जोड़ रहे थे.शाम को जब रोहित घर लौटटा तो ना जाने कैसे खुशहाली का समय इतना तेज़ी से गुजर जाता कि मालूम ही नहीं पड़ता था. शादी के पहले दो साल घूमने फिरने और गूडी-गूडी रहने में बीत गए थे. उसके बाद बच्चों का जीवन में चले आना, और दिन-रात की ज्यादातर घड़ियाँ उनके नाम हो जाना लम्हों को मानो और रफ़्तार दे रहे थे. सब कुछ शुभ और मंगलमय, किन्तु राशी और रोहित व्यक्तियों के रूप में एक दूसरे को शायद समझ नहीं पाए थे, यद्यपि दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम किसी भी मिलनेवाले को महसूस होता था. सभी के जुबाँ पर यही चर्चा रहती थी कि राशी और रोहित की जोड़ी बहुत ही बेहतरीन है, दोनों ‘मेड फॉर ईच अदर’ हैं. घट के अन्दर क्या बसा है कौन जानता है.
समाज के पैमाने सुख को मापने के अधिकांशत भौतिक और अर्ध-भौतिक होतें हैं: अच्छा रहना, अच्छा खाना, घूमना-फिरना, एक बेटा-एक बेटी, अच्छा बिज़नस, स्टेटस और इज्ज़त, परिष्कृत रुचियाँ, थोड़ा बहुत लिखना पढना, विदेश यात्रा, गहने-जेवर, छोटी-मोटी आर्थिक सहायता जरुरत-बेजरूरत-मंदों की कर देना, NGOs को चन्दा दे देना, धार्मिक अनुष्ठानों में शिरकत कर लेना, बच्चों का अच्छी स्कूल में पढना, अच्छा स्वास्थ्य, मियां-बीवी का अच्छा फिगर इत्यादि. आपसी समझ और मानसिक संतुष्टि शायद वैसे भी इस फेहरिस्त में शामिल नहीं है और ना ही वह दूसरों के सामने आ पाते हैं. यहाँ तक कि एक छत के नीचे रहनेवाले बीवी और खाविंद भी एक दूसरे की अंदरूनी फीलिंग्स को काफी हद तक नहीं समझ पाते. जीवन एक गति पर चलता है, और यह बिंदु कुछ ज्ञात, कुछ अज्ञात हो बस अपना महत्व नहीं प्राप्त कर पाते. बरसों से चली परम्पराएँ और परिभाषाएं समय के साथ छोटे मोटे संशोधनों और रूपांतर के बावजूद भी सटीक नहीं हो पाती. ऐसा ही कुछ हमारे “आर ” दम्पति पर भी लागू हो रहा था. जहाँ वे एक दूसरे पर ‘जान’ छिड़कते थे, वहीँ अपने अपने वुजूद और आपसी आदर को उभारने का शायद मौका ही नहीं पा रहे थे, क्योंकि सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था. देना लेना भौतिक स्तर पर इतना था, और इतना अच्छा जा रहा था की इन पहलुओं पर शायद नज़र ही नहीं जा रही थी.. कभी कभार छोटे मोटे झगडे खड़े होते, जो दोनों की सामायिक समझदारी से निपट जाते थे….और उसके बाद ‘दे लिव्ड हैपिली ’ वाली बात घटित हो जाती थी. आपसी समायोजन, संस्कारगत था अथवा प्रक्टिकल किन्तु आपसी समझ और अंतरंगता पर आधारित नहीं था.
तीव्रगति से चलती रेल-गाड़ी से जो दृश्य हमें दिखतें हैं और अचानक रूक जाने पर हम उन्हें भिन्न रूप में देख पाते हैं, ऐसा ही कुछ हमारे “आर ” दम्पति की दास्ताँ-ए-जिन्दगी में देखा गया. रफ़्तार से चली जा रही जिन्दगी में एक ब्रेक सा लगा…..जब डॉक्टर ने राहुल के लिए कुछ ऐसा बताया जो एक बज्राघात से काम नहीं था. राहुल चार वर्ष का हो गया था. तुतलाती जुबाँ से जब वह बोलता तो राशी और रोहित विभोर हो जाते थे. और जब उसकी धुन में धुन मिलाकर रितिका कुछ बोलती तो उनके मान मयूर नाच उठते. रोहित से ज्यादा राशी का वक़्त बच्चों के साथ गुजरता था. एक दिन शाम को जब रोहित घर आया, और राशी के संग बैठ शाम की चाय पीने लगा तो राशी ने कहा, “एक अजीब स़ी बात आप से शेयर करना चाहती हूँ, भगवान करे यह मेरा बहम हो.”
रोहित ने कहा, “ऐसी क्या बात है, मुझ से तुम जरूर कहो,.”
राशी बोली, “जाने दो….बस यूँ ही खाली दिमाग में आई ग़लतफ़हमी स़ी है…मैं तो बस…”
रोहित उत्सुक और चिंतित एक साथ हो गया, और राशी से पूछने लगा, “ जब मन में आ गयी है तो जरूर बताओ, नहीं तो तुम भी बेचैन रहोगी और मैं भी बेचैन…”
पुरुष को बाहर की चाहे जितनी बड़ी बातें मालूम हो या वे उसके ओब्ज़र्वेशन पॉवर के घेरे में आ जाती हो, लेकिन घर और जिन्दगी की बहुत स़ी बातें उसे स्त्रियों से ही मालूम होती है. कारण पुरुष जीता नहीं बस जीने के समान को जुटाने में ही लगा रहता है, और इसी की महत्ता को महिमा-मंडित कर अपने आपको सत्ताधीश समझने लगता है. रोहित भी अपवाद नहीं था. रोहित की दिनचर्या/रात्रिचर्या में, सुबह की सैर या गोल्फ, योग-व्यायाम, अख़बार पढना, बेड- टी ,ब्रेक-फास्ट, शाम की चाय, डिनर , टी वी न्यूज़, कारोबारी दिन, फ़ोन पर बातें करना, बच्चों के संग करीब करीब एक से खेल खेलना, बीवी के संग घर-संसार की सूचनाओं का आदान-प्रदान, बिस्तर का प्यार, छुट्टी के दिन दोपहर में सोना और शाम को बीवी के साथ सिनेमा या रेस्टुरेंट , कभी कभार दोस्तों के साथ बार में बैठना, त्यौहार पर्व के दिनों: मकसद बिना जाने बस पत्नि बच्चों के साथ मंदिर चले जाना… बस यही कुछ तो था…नपा तुला सा. और यही नाप तौल किया हुआ सब कुछ रोहित के लिए जीवन था, पारिवारिक जीवन….इससे जियादः अपने दिमाग को ज़ेहमत देना उसको गवारा नहीं था.
राशी ने रोहित को सुना. उसके रग-रग में बसे रिसीवर ने रोहित के वायिब्स को महसूस किया. अपनी चूड़ियों को थोड़ा कलाई से ऊपर चढ़ा,सावधान जैसी मुद्रा में हो कर, वह कहने लगी “राहुल जब भी चलता है, उसकी चाल में थोड़ा अजक सा लगता है. आप ने भी देखा होगा ?”
रोहित ने कहा, “राशी, मुझे तो बस उसकी हंसी और किलकारियां मुदित कर देती है, मैने कभी ध्यान से उसका चलना नहीं देखा. हाँ जब तुम ने कहा है तो अब जरूर ध्यान दूंगा.” थोड़ा रुक कर बोला, “क्यों ना अभी देखा जाये ?”
नन्हा राहुल थोड़ी दूर पर अपने खिलोनों से खेल रहा था, रितिका अपने होम-वर्क में शायद व्यस्त थी. राशी बोली, “रा….हु…..ल ! देखो पापा तुम्हारे लिए क्या लायें है ?”
राहुल ललचाया सा बालसुलभ ध्वनियाँ करता हुआ अपने परेंट्स की जानिब बढ़ने लगा. रोहित ने ध्यान से देखा उसके पांव कुछ अजीब तरहा से पड़ रहे थे. उसे भी कुछ अब्नोर्मलिटी का एहसास हुआ, मगर समझ नहीं पाया कि ऐसा क्यों है ? और सच में ही यह कोई किस्म का विकार है या राशी की बात सुनने के बाद एक सहज सा भ्रम.
“कल डॉ. गाँधी को दिखा देते हैं, अच्छा छोड़ो वह तो इसे हमेशा से ही देखते आये हैं, हम इसे डॉ. कपूर के पास ले चलते हैं जो शहर के जानेमाने ‘चाईल्ड स्पेशलिस्ट ’ हैं. हाँ उनका अपोइन्टमेंट मिलना जरा मुश्किल है मगर मेरे एक बिज़नस एसोसियेट की सिफारिश से शायद काम बन जाये.”
दूसरे दिन शाम को राशी और रोहित राहुल के साथ डॉ.कपूर के चैम्बर में थे.
डॉ.कपूर ने राहुल का जनरल -चेक-अप किया और उसे चला कर भी देखा. डॉ.कपूर कुछ गंभीर हो गए थे, लेकिन उन्होंने कहा कुछ नहीं कुछ टेस्ट्स लिख दिए और उसकी रिपोर्ट्स के साथ फ़ोन करके आने को कह दिया.
डॉ.कपूर ने टेस्ट्स कि रिपोर्ट्स को देखा और कहने लगे, “मुझे कहते हुए दुःख हो रहा है, आपका बच्चा एक असाधारण स्थिति के तहत है, जो आनुवंशिक है. मेडिकल भाषा में इसे ‘Duchennes Muscular Dystrophy’ कहतें है. इसमें बच्चे को क्रमशः कमजोरी से दो-चार होना होता है. मांसपेशियां शनै शनै नष्ट होती जाती है. इससे पीड़ित बच्चे को व्हील चेयर पर ही रहना होता है. २० से २२ वर्ष तक की आयु तक अधिकतम बच्चा जीवित रह पता है. यद्यपि विज्ञानं बहुत कुछ शोध कर रहा है , आज के दिन यह एक लाइलाज स्थिति है.”
सुन-कर राशी और रोहित स्तब्ध रह गए. राशी को तो ऐसा लगने लगा कि उससे उसका सब कुछ छीन लिया गया हो. डॉ. कपूर ने कुछ ‘प्रिंट आऊट्स ’, जिनमें इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी थी, उनको दे दिए और हिदायत दी कि उन्हें बहुत ध्यान से पढ़ा जाय. डॉ. कपूर स्वयं बहुत उदास थे, मगर हकीकत से तो मुंह नहीं चुराया जा सकता था. उन्होंने ‘ आर ’ दम्पति से कहा कि वे पोसिटिव सोच रखें, आस्तिक हैं इसलिए जो स्थिति है उसे अध्यात्मिक दृष्टि से देखें, हो सकता है विज्ञानं किसी नयी खोज के साथ चला आये. दूसरे दिन रविवार था. डॉ.कपूर ने उन्हें शाम की चाय अपने यहाँ पीने का अनुरोध किया. रात के दास बज चुके थे, नमस्कार कर भारी मन से “आर ” दम्पति अपने घर को रवाना हो गए. राशी की आँखों में आंसुओं की झडी लगी थी, और रोहित गुम-सुम सा गाड़ी ड्राइव कर रहा था. पूरे रास्ते, दोनों चुप-चाप थे. दोनों ही के मन में तरहा तरहा के ख़याल और सवाल उठ रहे थे. डॉक्टर से जो सुना वह किसी बज्रपात से कम नहीं था.
घर पहुच कर राशी बिना कुछ खाए और कपडे बदले बिस्तर पर गिर कर सुबकने लगी. सिसकियाँ थी कि थम ही नहीं रही थी. रोहित आते ही डॉ. कपूर के दिए लिटरेचर को पढने में लग गया. राशी पर क्या बीत रही थी, ऐसी असमंजस की हालत थी कि लग रहा था, मानो उस से उसको कोई सरोकार नहीं हो. यह नहीं कहा जा सकता कि रोहित दुखी नहीं था, किन्तु उसका दुःख कुछ अलग किस्म का था और ज्यों ज्यों वह पढ़ रहा था उसके मानसिक तंत्र में अजीब स़ी उथल-पुथल हो रही थी.चेहरे पर और ज्यादा तनाव छाये जा रहा था. उसने अपना लैपटॉप ऑन किया और ‘नेट’ पर Duchenne Muscular Dystrophy (DMD) के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकठ्ठा करने लगा. वह सब कुछ अशांत मन से कर रहा था और ना जाने क्यों उसके वाइब्स क्षोभ, नकारात्मकता और एक विद्वेष से भरे जा रहे थे, जब की इस स्थिति में राशी के वाइब्स में दुःख, मोह, करुणा और ईश्वरीय-सत्ता के प्रति आवेश था. बच्चे कब के सो चुके थे, आया बच्चों को लिए उनके कमरे में थी. और यह दो दुखी मानव बिना संवाद, दुश्चिंता से घिरे चुप चाप अपने बेडरूम में नींद और जागने की सोच से परे साँसे ले रहे थे.
समय का अपना क्रम होता है और मन-मस्तिस्क का अपना. कभी समय तेज़ी से जाता मालूम होता है तो कभी अत्यंत ही धीरे. यह सब मन की सोचों पर निर्भर करता है. सुकून और बेफिक्री की घड़ियाँ बस जल्द ही बीत जाती महसूस होती हैं.मलाल और उससे उपजे तनाव और दुश्चिंता के पल पहाड़ के समान प्रतीत होतें हैं. वह रात बहुत लम्बी थी, राशी के लिए भी और रोहित के लिए भी. राशी को डॉक्टर की बातें रह रह कर याद आ रही थी. वह अपने आपको राहुल के बिना नहीं सोच पा रही थी. राहुल अभी चार साल का था. आने वाला एक एक दिन कैसा होगा ? कैसे जी पाऊँगी मैं अपने लाडले को तिल तिल बीतते देख कर ? कैसा विधान है यह प्रकृति का ? राहुल बड़ा होगा, समय पाकर उसे भी अपनी बीमारी का मालूम होगा, कैसी बीतेगी उसके मन पर ? कैसे बड़ा करुँगी इस असामान्य बालक को ? रितिका के सोच भी इस बारे में कैसे ढलेंगे ? ऐसे ही कई प्रश्न घुमड़ रहे थे बेतरतीब से.
उधर रोहित सभी उपलब्ध सूचनाओं पर सोच रहा था, आज जो लाइलाज है कल हो सकता है कोई इलाज विज्ञान की रिसर्च मुहैया करा दें . तब तक ? और इसका कोई भी इलाज नहीं निकल सका तो ? अमेरिका के Muscular Dystrophy Association (MDA) की वेबसाइट भी उसने विज़िट की थी. जिसमें इस बीमारी के बारे में बहुत स़ी जानकारियां दी हुई थी. बच्चे के मैनेजमेंट से सम्बंधित भी बहुत स़ी बातें लिखी थी. बीमारी के कारणों पर भी विस्तार से चर्चा थी, जो की डॉ. कपूर द्वारा दिए गए लिटरेचर में बताये गए तथ्यों को ही एक अलग शब्दावली में प्रस्तुत करने का प्रयास था, ताकि ‘layman’ भी समझ सकें. उसके दिमाग में होती प्रतिक्रियाओं का यदि कोई चित्र लिया जाता या माप-जोख किया जाता तो जो नतीजा उभर कर आता उसमें ज्यादा हिस्सा बीमारी के कारण के इर्द-गिर्द घूम रहा होता;और थोड़ा सा हिस्सा अन्य बातों के मुत्तालिक होता.
सुबह को होना ही था, और दोपहर को भी. सब कुछ उदासी और तनाव से भरा हुआ था. रविवार का दिन इतना लम्बा कभी नहीं हुआ था. शाम को ४.०० बजे ‘आर ’ दम्पति डॉ. कपूर के बंगले पर थे. चाय तो एक बहाना मात्र था, असल मकसद तो मसले पर चर्चा करना और आगे की सोच को प्रोसेस में लाना था.
डॉ. कपूर कोई ६० साल के बुजुर्ग थे, जिन्होंने शादी नहीं की थी. कहतें हैं की डॉ. कपूर लुधियाना के किसी बड़े व्यावसायिक खानदान से थे. बचपन से उनकी रूचि साईंस और लिटरेचर में एक समान थी. वे बहुत ही ज़हीन और ज़ज्बाती इंसान थे. चूँकि कारोबारी जिन्दगी उन्हें कभी भी रास आनेवाली नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपने आप को साईंस और लिटरेचर के हवाले कर दिया था, और दोनों ही में उन्होंने महारत हासिल कर ली थी. देश विदेश में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और प्रसिद्ध बाल-रोग-विशेषज्ञ बन गए. उनकी कलम ने साहित्य के क्षेत्र में भी अपना कमाल दिखाया था. उनके उपन्यास, कवितायेँ, दार्शनिक और सामायिक विषयों पर निबंध बड़े चाव से पढ़े जाते थे.
डॉ. कपूर मानवीय मूल्यों और संवेदनशीलता के सजीव उदाहरण थे.
डॉ. कपूर ने राशी और रोहित का स्वागत किया. औपचारिक नमस्कार के आदान प्रदान के पश्चात डॉ. कपूर ने पूछा, “राहुल क्या कर रहा था ?”
राशी बोली, “हमेशा की तरहा खेल रहा था.”
“कैसे हो तुम लोग.” डॉ. कपूर का दूसरा प्रश्न था, जिसका जवाब दोनों से नहीं दिया जा सका. राशि की गीली आँखों और रोहित के तनाव भरे चेहरे में डॉक्टर की अनुभवी नज़रें जवाब खोज चुकी थी.
“रोहित साहिब ! एकेडेमिकली आप किस स्ट्रीम से हैं ?” पूछा डॉक्टर ने.
“जी मैने Physics (Hons) में B.Sc. की और उसके बाद एक बिज़नस स्कूल से MBA किया .” जवाब दिया था रोहित ने.
“राशी बेटा ! आपकी शिक्षा के बारे में हमें कुछ बताइए.” डॉक्टर राशी की ओर मुखातिब हो कह रहे थे.
“जी कुछ खास नहीं मैं ‘फिलोसोफी’ में M.A. हूँ. समझिये ग्रेजुएशन के बाद पढ़ना जारी रखना था.” राशी बोली.
उसके बाद बात-चीत परिवार, होबीस ,रीडिंग हैबिट्स , आदि पर बहुत ही संक्षेप और अनमने ढंग से हुई….लेकिन डॉ. कपूर इस तरहा उन्हें पिछली रात और अब तक की सोचों से कुछ दूर ले जा पाए. इतने में चाय आ गयी, जिसका दौर भी बहुत छोटा रहा, और इस दौरान भी डॉ. कपूर इधर उधर की बातें करते रहे, अपने बारे में.
चाय के बाद डॉक्टर ने कहा, “राशी और रोहित, आपने मेरे दिए लिटरेचर को देखा होगा ?
प्रत्युत्तर दिया रोहित ने, “जी मैने सारे राईट अप्स पढ़ डाले, यही नहीं इन्टरनेट पर उपलब्ध जानकारियां भी मैने हासिल कर ली है.”
“आप ने राशी से भी इन जानकारियों को शेयर किया होगा ?” बोले डॉक्टर.
रोहित की चुप्पी को देख, डॉ. कपूर बोले: “चलो मैं संक्षेप में थोड़ा बता देता हूँ.”
डॉ. कपूर तटस्थ भाव लिए, सहजता से कहने लगे:
“Muscular Dystrophy (MD) एक अनुवांशिक (genetic) बीमारी है जिसको हम लगातार शरीर को कमज़ोर करने वाली और अस्थिपंजर मांसपेशियों (skeleton muscles), जो की sharir के मूवमेंट्स को नियंत्रित करती है,के अप्विकास (degeneration) की स्थिति के रूप में देख सकतें हैं. राहुल को दुर्भाग्यवश जिस स्तिथि में अस्तित्व ले आया है उसे Duchenne Muscular Dystrophy (DMD) कहते हैं.
DMD लड़कों को ही प्रभावित करती है.”
पानी का एक घूँट लेकर डॉक्टर ने बात आगे बढाई:
“DMD basically is the result of mutation in gene that regulates dystrophin, A protein involved in maintaining the integrity of muscles fiber. अधिकांश लड़के १२ वर्ष की उम्र तक पहुँच कर चलने में असमर्थ हो जाते हैं, उन्हें व्हील चेयर का सहारा लेना होता है. कुछ वर्षों के बाद उन्हें सांस लेने में असुविधा होने लगती है और रेस्पिरेटर की मदद लेनी होती है. जीवन सम्भावना करीब करीब २०/२२ साल की उम्र तक की होती है. जैसा की मैने कहा था,फ़िलहाल इसको ठीक करने का कोई भी इलाज उपलब्ध नहीं है. पीड़ित लड़के को थोड़े से चैन का जीवन देने के लिए, फिसिकल थेरपी, रेस्पिरेटरी थेरपी,पेसमेकर आदि को अपनाया जाता है. अप्विकास की गति को धीमा करने के लिए stroids का उपयोग भी किया जाता है. हाँ इसमें से कुछ बातें मैं आप लोगों को पहिले भी बता चुका हूँ.”
इतना कहकर डॉ. कपूर थोड़ा रुक कर दोनों के चेहरों पर कुछ पढने लगे और बोले: “राशी, शायद आप कुछ पूछना चाह रही हैं.”
राशी रुआंसी स़ी बोली, “अंकल ! आपने जो जानकारी दी वह आपका विषय है, जिसके आप विशेषज्ञ हैं , इसके बारे में मेरे क्या प्रश्न हो सकते हैं. मैं आपके द्वारा बताई मेडिकल साईंस की बातों को बारीकी से समझ पाने की मन-स्तिथि में नहीं हूँ.मुझे तो बस यही पूछना है कि जब तक संसार में रहे, मैं अपने बेटे को कैसे पालूं और उसे किस तरह खुश रख सकूँ. एक माँ होने के नाते मेरे लिए सबसे जरूरी बात मेरे बेटे की ख़ुशी और कम्फर्ट लेवल है.”
यह कहते कहते राशी का गला भर भर आ रहा था. किसी तरहा वह अपने पर काबू रख पा रही थी, मगर ना-कामयाब हो रही थी.
राशी की बात सुन, रोहित को लगा कि इस सम्बन्ध में ऐसी बातें इतने बड़े डॉक्टर को पूछना शायद राशी की नादानी है, उसे डॉ. कपूर द्वारा दी गयी लिबर्टी को इस रूप में नहीं लेना चाहिए. उनसे तो हमें शरीर-विज्ञानं और चिकित्सा के बारे में अपनी जो भी जिज्ञासाएं है, पूछनी चाहिए. वह कुछ कहने जा ही रहा था, कि डॉ. कपूर ने हाथ दिखा कर रोक दिया. फ्लास्क से पानी का ग्लास भर कर उन्होंने राशी से पीने को कहा. डॉक्टर साहिब कुछ चिंतन कर कहने लगे:
“ राशी बेटा ! किसी भी प्यार करनेवाली माँ को अपने बच्चे से प्यार करना नहीं सिखाना होता जैसे कि किसी मछली को तैरना नहीं सिखाना होता. यह तो स्वयं-स्फूर्त होगा. बस थोड़ा सा चेतन होना होगा. यह ख़याल खास तौर पर रखना होगा कि आप लोग राहुल पर कोई दया-भाव नहीं दिखाएँ. उसके साथ आप लोगों का व्यवहार वैसा ही होना चाहिए, जैसे कि एक सामान्य संतान के साथ, उसे किसी भी तरह से यह एहसास ना हो कि उसको कुछ कंसेशनस दी जा रही है क्योंकि….उसे कुछ ज्यादा प्रेम दिया जा रहा है क्योंकि…ज्यों ज्यों वह बड़ा हो उसे क्रमशः उसकी बीमारी के बारे में जानकारी देनी होगी. एक सजगता के बीज आपको उसके मनोमस्तिष्क में बोने होंगे. उसे एक तमाशा या सहानुभूति का पात्र कत्तई नहीं बनने देना है. उसकी इस हालत के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराना है, यहाँ तक कि ईश्वर को भी. आप लोगों को जागरूकता अपनानी होगी, सकारात्मक सोचों के साथ आने वाले समय को बिताना होगा. मानसिक पहलू पर मेरी समझ में मैने काफी कुछ कह दिया है.
शारीरिक स्तिथि के बारे में उसके लिए योग्य डॉक्टर के निर्देशानुसार, फिसियो थैरेपी , सांस सम्बंधित चिकित्सा इत्यादि की पूरी व्यवस्था आप लोगों को रखनी होगी.नए डेवेलपमेंटस इस के इलाज और रख रखाव के बाबत होते रहेंगे, आप लोगों को अपडेट होना होगा.
उसकी पढ़ाई लिखाई, खेल, और मनोरंजन के लिए यथासमय आपको ऐसा कुछ करना होगा जिस उसे संतुष्टि मिल सके. आप का व्यवहार महज़ फ़र्ज़-अदाई नहीं होकर स्नेह और वात्सल्यपूर्ण होना चाहिए, तह-ए-दिल से.
यह मसला ज़ज्बात से ज्यादा समझ का है. उसका उचित लालन-पालन कर आप कोई त्याग नहीं कर रहे होंगे.
मैने शायद बहुत लम्बी तकरीर कर दी है. समय समय पर मुझ से आप मशविरा ले सकतें हैं, आपका साथ देने में मुझे सुकून मिलेगा.”
यह कह कर डॉ. कपूर चुप हो गए. कमरे में सन्नाटा था. अपनी आदत के मुताबिक डॉ.कपूर दोनों के चेहरों को पढ़ रहे थे.
राशी ने बस इतना कहा, “ थैंक यू वैरी मच,अंकल ! आपका आशीर्वाद और सहयोग हमारा सम्बल होगा.” उसकी रुलाई फूट पड़ी थी किन्तु चेहरे पर शांति थी…भय और दुष्चिन्ता नहीं.
अनायास ही रोहित पूछने लगा, “डॉक्टर साहेब, मैने काफी कुछ पढ़ लिया है, किन्तु इस बीमारी के सटीक कारण के बारे में, मैं आप से पुख्ता जानकारी चाहूँगा.”
डॉ. कपूर बहुत ही गंभीर होकर कहने लगे : “ जैसा की मैं कह चुका हूँ Muscular Dysptophy एक अनुवांशिक बीमारी है. इसका सम्बन्ध उन genes से है जो लड़के को विरासत में मिलते हैं अपने जनकों से. विज्ञान की भाषा में यूँ समझो, DMD is inherited in X pattern.gene that contains A mutation causing this desease is on X chromosome. Every boy inherits X chromosome from the mother and Y chromosome from father. Girls get X chromosomes : one from each parent, since both the chromosomes cannot have that genetic mutation hence the girl-child is safe, though she may be A carrier.”
रोहित ने पूछा डॉक्टर से, “यह भाषा मैं स्पष्ट: नहीं समझ पाया.. मुझे तो बस यही जानना है कि राहुल को यह बीमारी किसके genes में प्रॉब्लम होने की वजह से मिली. मुझे बस यही जानना है, राहुल को यह मुझ से मिली है या राशी से ?”
डॉक्टर ने कहा, “एक मेडिको के नाते मैं सब पहलू आपको बता चुका हूँ. इंसान माँ बाप दोनों से नाना प्रकार की बीमारियों और कमियों को इन्हेरिट कर सकता है, जो
की genetic होती है. इस केस में, राहुल ने यह बीमारी अपनी माँ से इन्हेरिट की है…मगर इसमें किसी भी दृष्टि से राशी का दोष नहीं है…..आपको इसे महज एक संयोग समझना चाहिए.”
"थैंक यू वैरी मच डॉक्टर साहब, आपने हम लोगों के लिए इतना कष्ट किया. अब इजाज़त दीजिये.” कह कर रोहित उठ खड़ा हुआ. राशी भी खड़ी हो गयी, आँखों में कातरता के भाव लिए हुए. ड्राईंग रूम में फैले स्पंदन (viberations) काफी कुछ कह रहे थे, मौन में भी.
रोहित और राशी ने डॉक्टर साहिब को नमस्कार किया और अपनी गाड़ी में बैठ घर की तरफ रवाना हो गए. रोहित कह रहा था, “इस हालत की जिम्मेदार तुम हो सिर्फ तुम. तुम्हारी एक कमी के कारण मेरा सारा संसार उजड़ गया. और संतान भी अब मैं पैदा नहीं कर सकता, ना जाने आगे आनेवाला/आनेवाली कुछ ना कुछ कमी को लेकर आये. बस राहुल का भी वक़्त मुक़र्रर हो चुका है, टाइम पास करना है. रितिका को भी कौन ब्याहेगा क्योंकि कहीं वह भी तुम्हारी तरह…….हे प्रभु, तुम ने क्यों किया ऐसा मेरे साथ.”
राशी चुप थी. घर में प्रवेश करते ही राशी ने राहुल को अपने सीने से जकड़ लिया, मानो कोई उसे उससे छीन रहा हो. और रोहित ‘शिवास रिगल’ का पेग बना रहा था.
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